राजेश रावत: आपदा में मदद के लिए देवदूत बनकर पहुंच जाता है यह शख्स
Pen Point, Dehradun : पहाड़ में बरसात के दिनों में आपदाओं का जोखिम काफी बढ़ जाता है। चाहे वह सड़कें टूटना हो या फिर भूस्खलन या नदियों की बाढ़ हो, कुदरत हर तरीके से यहां इंसान की परीक्षा लेती है। ऐसे विकट हालात में जीवट और जुनून के धनी कुछ लोग हीरो बनकर उभरते हैं। उत्तरकाशी के भटवाड़ी इलाके में हुर्री गांव का राजेश रावत ऐसा ही शख्स है। जो हर ऐसी त्रासद घटना में देवदूत की तरह पहुंचकर कई लोगों को नई जिंदगी दे चुका है। हाल ही में गंगोत्री हाईवे पर हुए दर्दनाक हादसा उसकी सामने हुआ। इस हादसे में चार लोग मारे गए, मरने वालों की तादाद जयादा हो सकती थी, अगर राजेश रावत मौके पर नहीं पहुंचते। हैरत की बात घटना के समय राजेश वहां अकेला मौजूद था! जबकि जिले के आपदा प्रबंधन तंत्र को वहां पहुंचने में पूरे बारह घंटे लगे।
पैन प्वाइंट से बात करते हुए राजेश ने तफसील से इस हादसे को बयां किया। उन्होंने बताया- “ये घटना 10 जुलाई की शाम साढ़े सात बजे की है। उस दिन लगातार बारिश हो रही थी अंधेरा घिर गया था, ऐसे में अनहोनी की आशंका बनी रहती है। तभी मुझे किसी ने कहा कि गंगनानी पुल से कुछ दूरी पर गाड़ियों की लंबी कतार लगी है। मैं अपने कमरे पर गया और टॉर्च उठाकर बुलट पर पुल की ओर का रूख कर दिया। लेकिन कुछ दूरी पर पहुंचते ही सड़क पर फैले मलबे में बुलट नहीं चल सकी। मैंने उसे तुरंत किनारे सुरक्षित जगह पर खड़ा किया और पैदल ही चल पड़ा। वहां पहुंचने से पहले ही मुझे चीख पुकार की आवाजें सुनाई देने लगी। कुछ आगे चलकर जैसे ही आगे टॉर्च मारी तो मामला गंभीर था। पहाड़ी की ओर से काफी मलबा आया था जिसमें एक टैंपो ट्रैवलर और एक कार फंसी हुई थीं। लोगों को निकालना शुरू किया। तभी एक महिला दरवाजे के पास दिखी, मैं उसको लेने जा ही रहा था कि उपर से एक बड़ा बोल्डर तेजी से सीधा उसके उपर गिर गया, मुझे पीछे हटना पड़ा। किसी तरह कार में सवार लोगों को भी निकाला गया। तभी टैंपो ट्रैवलर समेत कार के उपर और भारी बोल्डर गिरने लगे।, जिससे वो पूरी तरह नष्ट हो गए। इस हादसे में चार लोगों की जान गई जबकि छह घायल हो गए थे।”
ऐसे कई हादसों में राजेश रावत राहत बचाव के लिए निस्वार्थ भाव से पहुंच जाते हैं। आजीविका के लिये गंगनानी में दुकान चलाने वाले राजेश का मानना है कि वे इसी काम के लिए बने हैं। सबसे पहले 2006 में जब वे स्कूली छात्र थे, तब से वे इलाके में होने वाली हर घटना में मदद को पहुंचने लगे। इस दौरान कई बार उनकी खुद की जान भी खतरे में आई। लेकिन मदद से मिलने वाली दुआओं का भरोसा हमेशा उनके साथ रहा।
साल 2019 में हिमाचल से सटे आराकोट इलाके में आई राहत बचाव कार्य में उन्होंने खास भूमिका निभाई। वही कुछ साल पहले उच्च हिमालयी क्यारकोटी ट्रैक पर फंसे बंगाली दल का भी उन्होंने रेस्क्यू किया। खड़ी चट्टान पर रोप के जरिए उतरना हो या फिर शवों को उपर चढ़ाना हो, राजेश को हर काम में महारत है। ऐसे निस्वार्थ काम के लिए राजेश को राज्य के आला अधिकारियों के हाथों सम्मानित भी हो चुके हैं।
सबसे ज्यादा कठिन हालात को लेकर राजेश बताते हैं कि हर घटना अपने आप में चुनौतीपूर्ण होती है। मैं अकेला काफी नहीं स्थानीय लोगों को साथ लेना पड़ता है और मिलजुलकर किसी भी हादसे के बीच काम होता है। गंगोत्री हाईवे पर होने वाली हर घटना में सबसे पहले राजेश की ही मौजूदगी होती है। यहां तक कि प्रशासन को पहली सूचना भी राजेश के फोन से ही जाती है। राजेश बताते हैं कि कोई भी घटना होती है तो मैं वहां सबसे पहले पहुंचने की कोशिश करता हुं, और सबसे पहले जिले के डीएम को सूचना देता हूं, ताकि आपदा प्रबंधन तंत्र या प्रशासन समय से अपनी कार्यवाही कर सके। इस दौरान स्थानीय लोगों को भी साथ ले लिया जाता है। हालांकि जिले के आपदा प्रबंधन तंत्र से वे खासे खफा हैं, राजेश के मुताबिक जिले में आपदा प्रबंधन तंत्र को जैसा मुस्तैद होना चाहिए वैसा बिल्कुल भी नहीं हैं, यही वजह है कि प्रशासन को राहत बचाव के काम में हमेशा देरी हो जाती है।
इन दिनों राजेश अपने टकनोर इलाके में लोगों को आपदा प्रबंधन को लेकर जागरूक कर रहे हैं। उनका मानना है कि जिन इलाकों में आपदाएं आती हैं, वहां स्कूली बच्चों को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। मैं खुद दस बारह गांवों में सौ के करीब लोगों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दे चुका हूं। बिना किसी सरकारी मदद के काम कर रहे राजेश राहत बचाव के उपकरणों के बारे मे बताते हैं कि कुछ ज्यादा नहीं है, एक रोप है, और बाकी सामान लोग आपस में मिला जुलाकर पूरा कर लेते हैं। गंगनानी के पास हुई दुर्घटना के वक्त जब वह टॉर्च लेने गए तो उन्होंने उत्साह से बताया- भाई जी मैंने ये टॉर्च नई ली है, भटवाड़ की एक दुकान से खरीदी गई यह टॉर्च ऑनलाइन चार हजार रूपए की है, लेकिन मुझे ढाई हजार में मिल गईं, इसका फोकस बहुत अच्छा है।