रैट माइनर्स: कानूनी रूप से प्रतिबंद्धित इस तरीके ने बचाई 41 मजदूरों की जान
PEN POINT, DEHRADUN : 17 दिन यानि 400 घंटे सिलक्यारा सुरंग में बिताने के बाद मंगलवार शाम 41 मजदूरों को सुरक्षित निकाल दिया गया। 12 नवंबर की सुबह जब पूरा देश दीवाली के उत्सव में डूबा था तो तड़के खबर आई कि गंगोत्री यमुनोत्री के बीच की दूरी कम करने को बनाई जा रही सिलक्यारा बड़कोट सुरंग में भूस्खलन होने से 41 मजदूर अंदर फंस गए हैं। अगले 17 दिनों तक दर्जनों भारी भरकम मशीनों से लेकर कई तरीकों के जरिए मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश की गई लेकिन सुरंग के भीतर भारी मलबा और लोहा बचाव कार्य में रोड़ा बना रहा। आखिरकार ‘रैट माइनर्स’ के जरिए 17वें दिन अंदर फंसे सभी मजदूरों को बाहर निकाला गया। सुरंग में बचाव कार्य के आखिरी दौर में जब मैनुअल खुदाई का काम शुरू हुआ तो ज्यादातर प्रदेशवासियों का वास्ता पहली बार ‘रैट माइनर्स और रैट माइनिंग’ शब्द से पड़ा। आपको जानकर हैरानी होगी कि रैट माइनिंग पिछले 9 सालों से देश में गैर कानूनी है। एनजीटी ने इसमें संभावित खतरों के चलते 2014 में इस पर रोक लगा दी थी।
रैट माइनर्स कौन होते हैं?
यह कोयला निकालने की एक विधि है। जिसे चूहे के बिल बनाने और मलबा खोदने के तरीके से लिया गया है। ठीक चूहे की तरह एक आदमी के जरिए मलबा निकाला जाता है। रेट माइनिंग आमतौर पर दो तरह की होती है। एक साइड कटिंग प्रोसेस और एक बॉक्स-कटिंग का तरीका होता है। दूसरे तरीके में जिसे 100 से 400 फीट गहरा एक गड्ढा खोदा जाता है। एक बार कोयले की परत मिल जाने के बाद चूहे के बिल के आकार की सुरंगें खोदी जाती हैं।
रैट माइनिंग के इस तरीके को काफी खतरनाक माना जाता रहा है और माना जाता रहा है कि इससे पर्यावरणीय खतरे पैदा होते हैं। क्योंकि खदानें आम तौर पर अनियमित होती हैं, जिनमें उचित वेंटिलेशन और सुरक्षा उपायों का अभाव होता है।
जो मजदूर भीतर गए होते हैं उनके लिए भी कई तरह के खतरों की संभावना बनी होती है। खनन के इस तरीके को कई घटनाओं के सामने आने के बाद काफी खतरनाक माना जाता रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था एनजीटी का कहना था कि ऐसे कई मामले हैं जहां बरसात के मौसम के दौरान कई मजदूर मारे गए हैं।