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समेश्वर देवता : पहाड़ का राजा जिसके कोप से वंशहीन हुआ था विल्सन

-आस्‍था और विश्‍वास : हर्षिल के राजा के नाम से मशहूर फ्रेडरिक विल्सन ने हिमालय के राजा समेश्वर देवता पर उठाया सवाल, तो नाराज देवता ने दिया वंश खत्म होने का श्राप
Pen Point, (Pankaj kushwal) : टिहरी रियासत और अंग्रेज फ्रेडरिक विल्सन का जिक्र एक दूसरे के बगैर अधूरा है। अंग्रेजों के हाथों आधा राज्य गंवाकर राज परिवार टिहरी में आकर बस गया था। जहां नए सिरे से राजपाठ चलाना पड़ा तो कमाई के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। राज्य के संचालन में होने वाले खर्चे जुटाने मुश्किल हो रहे थे। ऐसे में टिहरी राजा के सामने एक अंग्रेज व्यापारी फ्रेडरिक विल्सन एक प्रस्ताव लेकर पहुंचा। जिसके तहत उसने टिहरी रियासत के टकनौर क्षेत्र के जंगलों को लीज पर ले‍ लिया। बतौर लीज उसने राजा को वार्षिक 4 हजार रूपए के करीब की धनराशि देनी शुरू की। सुनने में भले ही रकम कम लगे लेकिन तब मुफलिसी में जी रहे राजा के लिए यह बड़ी राहत थी। अंग्रेज विल्सन ने अपना ठिकाना बनाया गंगोत्री धाम से 20 किमी पहले व आज के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हर्षिल को। करीब डेढ़ सौ साल पहले हर्षिल पहुंचे विल्सन ने यहां पेड़ों की कटान शुरू कर उसे मैदानों तक भेजने के लिए भागीरथी नदी की लहरों का सहारा लिया। विल्सन को हर्षिल भा गया और उसने हर्षिल को ही अपना ठिकाना बना लिया।

हर्षिल के समीप स्थित है मुखबा गांव। जहां गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने पर शीतकाल में गंगा की भोगमूर्ति प्रवास करती है। यहां के सेमवाल परिवार सर्दियों के दौरान मां गंगा की पूर्जा अर्चना करते हैं। इसी गांव के चंद परिवार की रायमाता और संग्रामी नाम की बुआ और भतीजी से विल्सन ने विवाह किया। लकड़ी के व्यापार के अलावा विल्सन जंगली जानवरों के शिकार, खासकर मुनाल का शिकार कर खूब धन कमा रहा था। उसकी अमीरी का आलम यह था कि देहरादून से लेकर हर्षिल तक उसने हर पड़ाव पर आलीशान बंगलों का निर्माण करवाया। यूं तो विल्सन के बारे में बहुत कम लिखा पढ़ा गया है लेकिन उनकी जीवनी ‘द राजा ऑफ हर्सिल’ लिखने वाले रॉबर्ट हचिसन विल्सन से जुड़ा एक रोचक किस्सा लिखते हैं।
हर्षिल में रहते हुए विल्सन अब पूरी तरह से पहाड़ी हो चुका था और स्थानीय लोग विल्सन को स्थानीय बोली के प्रभाव के कारण ‘हुलसन साब’ कहकर पुकारते थे।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद टकनौर समेत कश्मीर से लेकर हिमाचल तक समेश्वर देवता इस क्षेत्र का आराध्य माना जाता रहा है। समेश्वर देवता को भेड़ बकरियों को पालने वाले, ऊंचाई वाले बुग्यालों में भेड़ बकरियों के चुगान के लिए लंबा समय बीताने वाले लोगों की रक्षा करने वाला, इन इलाकों में वर्चस्व के लिए होने वाली लड़ाईयों में न्याय करने वाला माना जाता है। पूरे इलाके में आज भी समेश्वर को राजा मानकर पूजा जाता है।
सेलकु समेत ऐसे कई स्थानीय मेलों का आयोजन होता है जिसमें समेश्वर देवता अपने पश्वा पर अवतरित होकर तेज धार वाली कुल्हाड़ियों पर चलते हुए लोगों की समस्याओं को सुनकर उसका निवारण करते हैं, विवादों का न्यायपूर्ण अंत करते हैं।

टकनौर क्षेत्र में सितंबर महीने में सेलकु पर्व का आयोजन होता है, इसी दौरान मुखबा में भी सेलकु पर्व पर समेश्वर देवता अपने पश्वा पर अवतरित होकर कुल्हाड़ियों की धार के ऊपर चलते हुए लोगों की समस्याओं का निवारण करते हैं, विवादों को सुलझाते हैं।

1861 की बात है, सितंबर महीने में सेलकु मेला हो चुका था। विल्सन अपने बगीचे के काम में जुटा था। तभी वहां से मुखबा गांव निवासी कमलेश सेमवाल विल्सन से दुआ सलाम करने पहुंचे। सेलकु के आयोजन पर बात आई तो विल्सन ने तंज कसते हुए कहा कि समेश्वर का पश्वा जिन कुल्हाड़ियों पर चलता है उनकी धार कुंद कर दी जाती है इसलिए बिना उसके पैरों को नुकसान हुए वह उन कुल्हाड़ियों पर चलने का नाटक करता है।
यह बात कमलेश सेमवाल को नागवार गुजरी। उसने विल्सन को चुनौती देते हुए कहा कि ‘हुलसन साब, आप चार कुल्हाड़ियों का इंतजाम करो और उन्हें जितना चाहे उतना धारदार बना देना, फिर देखना समेश्वर देवता की शक्ति को’। खैर, विल्सन ने भी यह चुनौती स्वीकार कर ली और अपने स्टोर में रखी कुल्हाड़ियों की धार जितना संभव था तेज कर दी।
चुनौती के अनुसार अगले दिन हर्षिल में समेश्वर देवता की डोली और स्थानीय ग्रामीण आ जुटे। विल्सन भी अपनी तेज धार वाली कुल्हाड़ियों के साथ खड़ा था, तभी धराली का एक 14 वर्षीय युवा भीड़ से निकलकर आया और विल्सन को संबोधित करते हुए कहने लगा कि वह इन कुल्हाड़ी पर चल तो लेगा लेकिन विल्सन को वह सोने की जर्री लगा हुआ वह महंगा शॉल उसे अर्पित करना पड़ेगा जो उसने अपने कपड़ों के अंदर छुपाया है। यह सुनकर विल्सन को झटका जरूर लगा क्योंकि उस शॉल के बारे में उसने किसी को नहीं बताया था जो उसने अपने हालिया शिमला के दौरे के दौरान खरीदा था। खैर, विल्सन मान गया। उस 14 वर्षीय युवक पर समेश्वर देवता अवतरित हो गए, विल्सन के पास की कुल्हाड़ियों को जमीन पर रख समेश्वर देवता उन तेज धार वाली कुल्हाड़ियों पर चलते हुए लोगों की समस्याओं का समाधान बताते, विवादों को सुलझाते। आमतौर यह कुल्हाड़ियों पर चलने वाली क्रिया कुछ सौ मीटर की होती लेकिन उस दिन यह काफी दूर तक चली। समेश्वर देवता के उस युवक से उतर जाने के बाद युवक बेहोश हुआ लेकिन विल्सन यह देखकर हैरान था कि उसकी तेज धार वाली कुल्हाड़ियों पर चलने के बावजूद भी उस युवक के पैरों पर कोई निशान तक नहीं था। खैर, युवक के होश पर आने पर युवक ने वह शॉल मांगी जो समेश्वर को अर्पित की गई साथ ही युवक ने विल्सन को आदेश दिया कि उसके बरामदे में लगा वह विशाल घंटा भी अगले दिन मुखबा जाकर समेश्वर देवता के मंदिर को अर्पित कर दे।
विल्सन को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा कुछ होगा जिससे वह जिस इलाके का बेताज बादशाह बना था वहां उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा। वह अभी भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था कि समेश्वर देवता उसकी तेज धार वाली कुल्हाड़ियों से जीत गए।
अगले दिन अपनी पत्नि के भाई मंगेतु के साथ वह अपने बरामदे में लगे विशाल पीतल के घंटे को लेकर मुखबा की ओर निकल गया, लेकिन उसके दिमाग में अभी भी पिछले दिन हुए उसकी शर्मिंदगी हावी थी और वह समेश्वर को झुठलाने के लिए दिमाग में कुछ ताने बाने बुन रहा था। उसने घर से निकलते हुए एक हाथ में सोने का एक सिक्का और दूसरे हाथ में तिल के कुछ दाने रख दिए।
मुखबा पहुंचकर समेश्वर के आदेशानुसार वह पीतल का घंटा उसके साले मंगेतु ने समेश्वर के पश्वा को सौंपा लेकिन विल्सन ने एक शर्त और रख दी। उसने समेश्वर के पुजारी कमलेश सेमवाल को चुनौती देते हुए कहा कि समेश्वर अगर एक पहेली का जवाब दे दे तो वह उसके वर्चस्व को मानने को तैयार है। यह सुनकर कमलेश सेमवाल गुस्से से लाल हो गया लेकिन उसने यह चुनौती स्वीकार कर ली। विल्सन ने कहा कि अगर समेश्वर का वजूद है तो वह बताए कि उसके दाएं हाथ में क्या। कमलेश सेमवाल पर समेश्वर अवतरित हुए तो उसने वहां स्थित मां गंगा की भोग मूर्ति के नाक में लगे सोने की नथ की ओर ईशारा करते हुए कहा कि यह धातु तुम्हारे हाथ में है। यह सुनकर विल्सन चौंका पर उसके अंदर का घमंड अभी बाकी था।  उसने अगली चुनौती फेंकी कि मेरे बाएं हाथ में क्या है। समेश्वर के रूप में कमलेश सेमवाल ने बाहर से गुजर रही एक लड़की जिसके चेहरे पर कई तिल उग आए थे उसकी ओर ईशारा करते हुए कहा कि जो उसके चेहरे पर है वह तेरे बांए हाथ में है। विल्सन को झटका जरूर लगा लेकिन विल्सन की इस तरह समेश्वर की परीक्षा लेने से समेश्वर देवता जरूर नाराज हो गए।

कमलेश सेमवाल पर अवतरित समेश्वर देवता ने कहा कि मैं पहाड़ का राजा हूं, लोग मेरे चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं लेकिन तुमने तेज धार वाली कुल्हाड़ियों से मेरी परीक्षा ली, मुझ पर विश्वास न करते हुए फिर मेरी परीक्षा ली और तुमने मुझे देवता न मानकर कोई साधारण सा जादूगर माना। नाराज समेश्वर ने विल्सन के कुल के नाश का श्राप उसे दे दिया।
बाद में विल्सन को भी अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तमाम क्षमायाचना के बाद भी गुस्साए समेश्वर ने विल्सन की गलतियों को माफ नहीं किया।

हालांकि, दावा किया जाता है कि समेश्वर के इस श्राप के बाद विल्सन के परिवार के साथ कुछ ऐसी अनहोनी घटनाएं हुई जिसके बाद उसके कुल के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। कहा जाता है कि उसके चार बेटों में सभी जवानी में ही चल बसे।

 

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