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उस्ताद विलायत खां : सम्मान मिलने पर नाराज होता था ये महान फनकार

महान सितार वादक उस्ताद विलायत खां की आज 13 मार्च को है पुण्य तिथि, भारतीय शास्त्रीय संगीत में बड़ा मुकाम हासिल करने के बावजूद सम्मान और पुरस्कारों को लेकर विवादों में रहे

PEN POINT DEHRADUN : भारतीय शास्त्रीय संगीत की जहां भी बात होगी वहां उस्ताद विलायत खां को जरूर याद किया जाएगा। सितार पर थिरकती उनकी उंगलियों ने दुनिया भर में खूब शोहरत बटोरी। खास तौर पर सितार वादन को अंग शैली देने वाले भी वही हैं। अंग शैली यानी सितार से इंसानी आवाज जैसा संगीत पैदा करना। सितार में पांच की जगह छह तार जोड़कर इसके स्वरों को और पुख्ता बनाने की कारीगरी भी उन्हीं की है। इस अजीम फनकार ने सितार को जी भर के जिया, इतना कि इससे आगे उन्हें हर चीज मामूली लगती थी। यहां तक कि खुद को मिले सम्मान और पुरस्कारों की भी उस्ताद ने परवाह नहीं की। कहा जा सकता है कि पुरस्कारों को लेकर विवाद के सुर छेड़ना उनका खास शगल था।

साल 1964 में उस्ताद विलायत खां को पद़मश्री और 1968 में पद्म भूषण से नवाजा गया, भारत का चौथा और तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान। लेकिन उन्होंने दोनों सम्मान ठुकरा दिए। दलील थी कि सम्मान देने वाली समिति संगीत के मामले में उन्हें जज करने लायक नहीं है। यह भी जोड़ा कि जिस घराने से वो ताल्लुक रखते हैं, उसकी बहुत लंबी परंपरा है और ऐसे सम्मान से उन्हें ठेस पहुंची है।

अब आता है साल 2000। अब तक उस्ताद काफी मशहूर होने के साथ ही सितार और गायकी में एक पूरा संस्थान हो चुके थे। संगीत में उनके असीम योगदान को देखते हुए सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा। इससे भी उस्ताद ने मुंह फेर लिया। इस बार उन्होंने साफ तौर पर इसे अपना अपमान बताया। कहा कि वो कोई भी ऐसा सम्मान नहीं ले सकते जो उनकी विधा में किसी भी कलाकार या फिर जूनियर कलाकार को पहले मिल चुका हो। अगर कोई दूसरा सम्मान जो अब तक किसी को ना मिला हो वही सम्मान मैं ले सकता हूं।
इसी तरह संगीत नाटक सम्मान भी लेने से उन्होंने इनकार कर दिया था। जिसमें उनकी दलील थी कि सम्मान देने वाली संस्थाएं राजनीति से प्रेरित और लॉबिंग करने वालों के दबाव में काम कर रही हैं। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो से भी दूरी बनाए रखी।

बाद में आर्टिस्ट़स ऐसोसिएशन की ओर से उन्हें पहले सितार सम्राट की उपाधि से नवाजा गया, जिसे उन्होंने खुशी से स्वीकार किया। एक और सम्मान आफताब ए सितार उन्होंने राष्ट्रपति पखरूद़दीन अली अहमद के हाथों ले लिया था। 13 मार्च 2014 को मुंबई में 75 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। बताया जाता है कि उन्हें लंग कैंसर था।

शरीर छोड़ने से पहले विलायत खां भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक खास मुकाम हासिल करने के साथ ही आने वाली पीढ़ियों को अपनी विधा में बहुत कुछ दे गए। फिल्म संगीत की बात करहें तो हिंदी में उन्होंने महज एक फिल्म कादम्बरी में संगीत दिया। जिसमें उन्होंने नवोदित गायिका के रूप में कविता कृष्णमूर्ति को गायन का मौका दिया। जो बाद में हिंदी फिल्मों की सुविख्यात गायिका बनीं।

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