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13 मार्च 1940 : ऊधम सिंह ने डायर को मौत के घाट उतारा

कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर अंग्रेज सेना का एक अफसर था। उसे भारत में अस्थाई ब्रिगेडियर जनरल बना कर भेजा गया। ये वही जनरल डायर था, जिसे पंजाब के अमृतसर शहर में जलियांवाला बाग नृशंस नरसंहार के लिए जिम्मेदार करार दिया गया। इसके बाद उसे इस पद से हटा दिया गया। मानवता को शर्मसार करने वाले इस कृत्य के लिए ब्रिटेन और भारत दोनों जगह उसकी बड़े पैमाने पर निंदा हुई। लेकिन इसके बावजूद भी वह ब्रिटेन में ब्रिटिश राज के कुछ करीबी लोगों के बीच एक प्रसिद्ध नायक बन गया। कुछ इतिहासकारों का तो यह मानना है कि यह दुर्घटना ही भारत में ब्रिटिश राज के अंत के लिए निर्णायक कदम साबित हुई।

PEN POINT : आज ही के दिन यानी 13 मार्च 1940 को महान स्वतंत्रता सेनानी ऊधम सिंह उर्फ मोहम्म सिंह आजाद ने 1919 में पंजाब के जालियांवाला बाग में हुए नरसंहार को अंजाम देने वाले तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर जनरल माइकल डायर को इंग्लैण्ड जाकर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। इसी के साथ निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले जलियांवाला बाग कांड का बदला पूरा हुआ।

'Pen Point

देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए हजारों युवाओं ने जान की बाजी लगाई। इन्हीं में से एक महान क्रांतिकारी थे पंजाब में पैदा हुए भारत माता के वीर सपूत ऊधम सिंह।

ऊधम सिंह पर जलियांवाला बाग नरसंहार का गहरा असर पड़ा और उन्होंने हर कीमत पर इसका बदला लेने की कसम उठाली। इस जघन्य सामुहिक हत्याकाण्ड का बदला लने के लिए वे लंदन तक पहुंचे। वहाँ जाकर उन्होंने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। इस तरह आजादी के इस दीवाने ने बेकसूर भारतीयों की मौत का आदेश देने वाले डायर पर 13 मार्च 1940 को ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर उसकी जीवनलीला खत्म कर, बहादुरी और देशभक्ति की नई मिसाल पेश की ।

ऊधम सिंह डायर को ही जलियांवाला कांड का असल गुनहगार मानते थे। इसीलिए उन्होंने मन मे ठान लिया था कि वे लंदन जाकर उसे मौत के घाट उतार कर उस नृशंस हत्याकाण्ड का बदला जरूर चुकाएंगे। बाकायदा ऊधम सिंह ने इसके लिए फुल-प्रूफ योजना बनाई, जिसके तहत वे उस दौर में भी लंदन पहुंचने में कामयाब हुए। कई दिनों तक वे वहां गोपनीय तौर पर सक्रिय रहे और डायर के बारे में जानकारियां इकट्ठी करते रहे। इसी दौरान उन्होंने एक बंदूक का इंतजाम किया। इसी बीच उन्हें डायर के एक बड़े कार्यक्रम में शरीक होने की जानकारी मिली। लिहाजा वे उसके आने से पहले ही तय कार्यक्रम स्थल कैक्सनटन हॉल पहुंच गए। तभी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक शुरू हुई। इसी बैठक में बड़ी संख्या में पहुंचे तमाम बड़े अफसरों के साथ डायर भी मौजूद था।

जैसे ही डायर बैठक को संबोधित करने के लिए मंच पर चढ़ा, ऊधम ने उस पर गोलियां चला दी और वह वहीं पर ढेर हो गया। इस हमले के बाद भी ऊधम सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि खड़े रहे। तभी अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उन्हें जनरल डायर की हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई और 31 जूलाई 1940 को ही ऊधम सिंह ने खुशी-खुशी फांसी के फंदे को गले लगा लिया।

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