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तो टिहरी के इस शख्स ने की थी सिखों के पवित्र हेमकुंड की खोज!

Pen point, Dehradun : सिखों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरू हो गई है। उच्च हिमालयी क्षेत्र 4632.96 में समुद्र तल से स्थित इस यात्रा की राह बेहद दुर्गम है। लेकिन गोविंद घाट से 20 किमी की पैदल चढ़ाई श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के बूते आराम से पूरी कर लेते हैं। सिख यात्रियों के जत्थे, खासकर युवाओं की टोली जोर से जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के नारे लगाते हुए सभी में जोश और विश्वास भर देते हैं। हिमालय में इतनी उंचाई पर जहां ऑक्सीजन भी कम है और अधिकांश महीनों में बर्फ रहती है। सवाल ये है कि सीमांत चमोली जिले में इतनी उंचाई पर सिख श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र कैसे तैयार हुआ ?

दरअसल, हेमकुंड साहिब को लेकर मान्यता है कि सिखों के नौवें गुरू गोविंद सिंह ने पूर्व जन्म में इस स्थान पर तपस्या की थी। इसी मान्यता के आधार पर यहां गुरूद्वारा स्थापित किया गया। मसूरी में बस गए विख्यात लेखक और घुमक्कड़ बिल ऐटकिन अपनी किताब एटकिन का हिमालय में यह राज खोलते हैं। वे लिखते हैं कि 1930 में टिहरी में रहने वाले संत सोहन सिंह को गुरूग्रंथ साहिब में एक उद्धरण मिला। सोहन सिंह गुरूग्रंथ साहिब के बड़े समर्पित अध्येता थे। उस उद्धरण के अनुसार गुरू गोविंद सिंह ने सात पहाड़ियों से घिरी घाटी में तपस्या की थी। एक सच्चे श्रद्धालु की तरह सोहन सिंह ने कई घाटियों में जाकर खोजबीन की और आखिर में वह लोकपाल पहुंचे। जिसे अब हेमकुंड कहा जाता है। शीघ्र ही उन्हें अनुभूति हुई कि उनकी खोज को गुरू का आशिर्वाद है। उन्होंने अधिक से अधिक सिखों को लोकपाल तक जाने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। जब वृद्धावस्था में वह गुरूद्वारे तक जाने लायक नहीं रहे तो उनके शिष्य सरदार मोदन सिंह गोविंद घाट में बैठा करते और बदरीनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं को चने भेंट करते और उन्हें हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए प्रेरित करते।
अन्य स्रोतों से पता चलता है कि 1936 में यहां पहला गुरूद्वारा बनाया गया था। जबकि 1937 में गुरूग्रंथ साहिब की पहली अरदास हुई थी।

हेमकुंड साहिब हिंदू धर्म के सबसे उंचाई पर बसे मंदिरों में से एक तुंगनाथ से भी अधिक उंचाई पर है। समय के साथ यहां यत्रियों की आमद बढ़ती गई। कालांतर में देश विदेश से सिख धर्मावलंबी भी पहुंचने लगे और यहां गुरूद्वारे को भव्य रूप दिया गया। हालांकि अधिक उंचाई पर होने के कारण अधिकांश यात्री यहां दर्शन के बाद वापस लौटते हैं।

हिंदू यात्री पहले से आते रहे हैं
जहां आज हेमकुंड है उस क्षेत्र को पहले लोकपाल कहा जाता था। मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान राम और लक्ष्मण ने पूजा की थी। आज भी यहां वह पौराणिक मंदिर मौजूद है। जिसे लक्ष्मण तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। यहां पूजा अर्चना के लिए चमोली जिले के गांवों समेत अन्य जगहों से लोग पहुंचते रहे हैं।

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