किस्सा: जब टिहरी राजा देवता के पश्वा के पीछे बांस का डंडा लेकर भागा
– गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह जादू टोने और लोक देवताओं के नाम पर होने वाले आंडबरों को करते थे नापसंद
– धार्मिक प्रवृति के टिहरी नरेश ने बाड़ाहाट में विश्वनाथ मंदिर की करवाई थी मरम्मत
PEN POINT, DEHRADUN : टिहरी रियासत के पहले राजा सुदर्शन शाह के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि वह अंधविश्वास, जादू टोने टोटकों के खिलाफ थे। धार्मिक प्रवृति के राजा को गढ़वाल क्षेत्र में लोगों पर देवता अवतरित होना भी पसंद नहीं है। किस्सा है कि एक बार महल के आंगन में किसी पर देवता अवतरित हुआ तो वह बांस का डंडा लेकर उस पश्वा के पीछे भागे। राजा का गुस्सा देख देवता अवतरित होने के बाद नाच रहा पश्वा अपनी जान बचाकर भागा।
गोरखों से गढ़वाल राज्य को मुक्त करवाने के बाद साल 1815 में अंग्रेजों ने गढ़वाल राज्य का अलकनंदा पार हिस्सा अपने पास युद्ध खर्च के रूप में रख लिया था और गढ़वाल राजा को अलकनंदा के दूसरी ओर वाला हिस्से तक सीमित कर दिया था। गोरखो के आक्रमण के बाद सुदर्शन शाह को रियासत लुटी पीटी हालत में मिला था। साल 1790 के इर्द गिर्द किसी साल में पैदा हुए सुदर्शन शाह का शुरूआती जीवन गोरखा आक्रमण के कारण निर्वासन में बीता लेकिन जब अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराकर गढ़वाल को मुक्त करवाया तो साल 1815 में राजा सुदर्शन शाह ने भागीरथी भिलगंना तट पर स्थित टिरी कस्बे को 30 दिसंबर 1815 को अपनी राजधानी बनाकर राज्य संचालन शुरू कर दिया था।
सुदर्शन शाह धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे। विद्वान ब्राह्मणों का सम्मान करना और उन्हें सहायता देने का काम किया करते थे। राजा सुदर्शन शाह ने राज्य की खराब वित्तीय हालत व दरिद्रता के बावजूद कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। बाड़ाहाट स्थित विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी राजा ने करवाया जो 1803 के विनाशकारी भूकंप से ध्वस्त हो गया था। धार्मिक प्रवृति के होने के बावजूद राजा सुदर्शन शाह अंधविश्वास विरोधी था। पहाड़ों में लोक देवता किसी व्यक्ति पर अवतरित होते हैं जिसे पश्वा कहा जाता है। इसके बाद ढोल की थाप यहां तक थाली की थाप पर भी पश्वा नाचना शुरू कर देता है।
एक बार उनके राजाप्रसाद यानि उनके निवास में उन्होंने डमरू और थाली बजने की आवाज सुनी, बाहर आकर देखा तो उनकी दासी पर गोरिल ग्राम देवता अवतरित हो रखा है और वह देवता के प्रभाव में नाच रही थी। गुस्साए राजा ने बांस का मोटा डंडा उठाकर देवता के प्रभाव में आकर नाच रही दासी और डमरू थाली बजा रहे लोगों की तरफ झपटा। राजा के हाथ मंे डंडा देखकर दासी पर अवतरित गोरिल देवता भी गायब हो गया और सब जान बचाकर भागे।
राजा ने देवताओं गोरिल के नाचने और नचाने पर प्रतिबंध लगवा दिया। तब गढ़वाल में एक कहावत भी प्रचलित हो गई कि जिस पर गोरिल देवता अवतरित होता था वह राजा सुदर्शन शाह नाम लेते ही कूच कर देता था।
जादू टोने वालों के हाथ पांव बांधे
राजा सुदर्शन शाह को जादू टोने के नाम पर लोगों को डराकर लूटने वाले लोगों से भी कोफ्त थी। टिहरी में बोक्सा जाति के लोग जादू टोने के लिए प्रसिद्ध थे। जादू टोने के नाम पर वह स्थानीय लोगों को भी खूब ठगते और डराते थे। बोक्सो को सबक सिखाने के लिए एक दिन राजा सुदर्शन शाह ने एलान किया कि उन्हें एक विशेष कार्य सिद्ध करवाने के लिए बोक्सो की जरूरत है जो जादू टोना कर सके, कार्य के बाद मुंह मांगा पुरस्कार देने की भी घोषणा की। ईनाम के लालच में तमाम बोक्सा अपने जादू टोने के सामान और पोथियों के लेकर राज दरबार पहुंच गए। जब राजा सुदर्शन शाह आश्वस्त हो गए कि सभी टोना टोटका करने वाले बोक्सा पहुंच गऐ हैं तो उन्होंने सिपाहियों से सभी जादू टोना करने वाले बोक्साओं के हाथ पांव बंधवा दिए और उनका सामान सारा भागीरथी नदी में फिंकवा दिया। जान की खैरियत मांग बोक्सो ने उसी रात टिहरी छोड़ने का फैसला लिया और उसी दिन टिहरी से सभी बोक्सा रातों रात गायब हो गए।
(स्रोत – टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास डॉ. शिव प्रसाद डबराल।)