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टिहरी सीट : रानी पर भाजपा का भरोसा कायम रहने की वजह जानिए

Pen Point (Pankaj Kushwal) : मालाराज्य लक्ष्मी शाह,  टिहरी राज परिवार की तीसरी प्रतिनिधि है जिन्हें टिहरी संसदीय सीट की जनता ने तीन बार जीतवाकर संसद भेजा है। 73 साल की उम्र और बेहद कम सक्रियता को लेकर अंदाजा लगाया जा रहा था कि 2024 में भाजपा उनका टिकट काट सकती है। लेकिन शनिवार शाम को जब भाजपा की उम्मीदवारों की घोषणा को लेकर प्रेस कांफें्रस में टिहरी संसदीय सीट से एक बार फिर माला राज्यलक्ष्मी शाह के नाम का एलान हुआ तो उत्तराखंड की राजनीति में रूचि रखने वाले ज्यादातर लोग हैरान थे। इस सीट से इस दफा दावेदारों की लंबी लिस्ट थी। कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की बेटी व भाजयुमो की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नेहा जोशी भी दावेदारों की लाइन में थी। चुनाव के बाद तकरीबन पौने पांच साल तक टिहरी सांसद से नाराज रहने वाले लोग आरोप लगाते रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद सांसद माला राज्यलक्ष्मी कभी भी क्षेत्र में नहीं दिखती, लोगों से संवाद नहीं करती, सदन में चुपचाप बैठी रहती है, क्षेत्र के मुद्दों को लेकर सक्रिय नहीं रहती लेकिन ऐसा क्या कारण है कि लोगों की पौने पांच साल तक नाराजगी के बाद भी चुनाव के वक्त वह अपने प्रतिद्वंदी को बड़े अंतर से हरा देती है, लगातार तीन चुनाव जीतती है और तमाम नाराजगियों के बाद भी हाईकमान 73 साल की इस सांसद को चौथी बार फिर से टिहरी संसदीय सीट का टिकट थमा देते हैं। आम मतदाता के तौर पर कुछ बाते हैं जो समझ आती है-
1. भाजपा उत्तराखंड का मिजाज समझ चुकी है खासकर पहाड़ का मिजाज, यहां भाजपा का एक मजबूत कैडर है जो प्रत्याशी को नहीं देखता, जो नहीं देखता कि उनका प्रतिनिधि उनके लिए कैसा काम कर रहा है वह बस भाजपा को देखता है। वह चुनाव के वक्त, वोट देते वक्त अपने सारे गिले शिकवे भुलाकर भाजपा को वोट डालता है। लिहाजा, भाजपा इसे सेफ जोन समझती है।
2. भाजपा को लगता है कि टिहरी संसदीय सीट के दस लाख के करीब के वोटरों का बड़ा हिस्सा आज भी राज परिवार में आस्था रखता है और वह राजपरिवार के नाम पर वोट दे देगा।
3. भाजपा का राज परिवार से जुड़े व्यक्ति को टिकट देना पार्टी पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव भी नहीं डालता। टिहरी रियासत पर करीब सवा सौ साल के राज काज के दौरान राज परिवार ने खूब संपति जोड़ ली थी। पिछले चुनाव में टिहरी सांसद ने अपने हलफनामे में अपनी संपति भी 185 करोड़ रूपए की बताई थी, लिहाजा आर्थिक रूप से इस प्रत्याशी को भाजपा पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ती है।
4. न कोई डिमांड, न कोई दबाव – टिहरी संसदीय सीट से राजपरिवार जब भी जीता उसने न हाईकमान से मंत्री मंडल में शामिल करने की मांग रखी न ही कोई दबाव बनाया। न कभी नाराजगी जताई न कभी अति आत्मविश्वास में आकर पार्टी के इतर कुछ किया। मतलब, शांति से जीत जाओ पांच साल तक शांत रहो। पार्टी के लिए एक बोनस सीट है टिहरी संसदीय सीट फिर इस पर ऐसे किसी नेता को क्यों झेला जाए जो मंत्री पद की आकांक्षा भी रखे, दबाव भी बनाए, अपनी एक लाइन भी खींचे।

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