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शुरू हो रहा है ‘हरियाली को अलविदा’ कहने का जश्न

– उत्तरकाशी जनपद के टकनौर और नाल्ड कठूड़ पट्टियों के आठ गांवों में सितंबर महीने के पहले पखवाड़े में मनाया जाता है सेलकू पर्व, ऊंचे बुग्यालों में सर्दियों की दस्तक के साथ हरियाली को कहा जाता है अलविदा
PEN POINT, DEHRADUN : प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में सर्दियां दस्तक देने जा रही है, ऊंचे बुग्यालों में उगने वाले रंग बिरंगे विभिन्न प्रजातियों के फूल भी पखवाड़े भर के भीतर सूखना शुरू हो जाएंगे। उत्तरकाशी जनपद के टकनौर और नाल्ड कठूड़ में हरियाली के खत्म होने और लंबी सूखी सर्दियों के स्वागत में एक अनूठा जश्न मनाया जाता है। पूरी रात भर ऊंचे बुग्यालों से चुनकर लाए गए फूलों को चादरनुमा बिछाकर ग्रामीण इस चादर के इर्द गिर्द पारंपरिक नृत्य का आयोजन करते हैं। इसी सप्ताह से हरियाली को अलविदा कहने का यह जश्न शुरू होने जा रहा है। सेलकू नाम से प्रसिद्ध यह पर्व टकनौर और नाल्ड कठूड के आठ से ज्यादा गांवों में मनाया जाता है, बसावट के लिहाज से सबसे पुराने इन गांवों में सदियों से हरियाली को अलविदा कहने के इस जश्न को मनाने की परंपरा रही है।

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गर्मियों की दस्तक के साथ जब ऊंचे बुग्यालों में जमी बर्फ पिघलने लगती है तो बुग्यालों में ब्रह्मकमल, मासी समेत विभिन्न प्रजातियों के फूल भी खिलने शुरू हो जाते हैं, मानसून की दस्तक के साथ ही ऊंचे बुग्याल अलग अलग रंगों के इन फूलों की चादर ओढ़ लेते हैं। सावन मास बीतने के साथ ही ऊंचे बुग्यालों में सर्दियां दस्तक देने लगती है तो यह फूल भी सूखना शुरू हो जाते हैं, लेकिन इन ऊंचे बुग्यालों के आधार शिविर गांवों में निवासरत ग्रामीण इन फूलों के सूखने से पहले इन्हें तोड़कर गांव के आराध्य देव को अर्पित करते हैं।

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ग्रामीण ऊंचे बुग्यालों से अलग अलग प्रजातियों के फूलों को तोड़कर गांव के मंदिर प्रांगण में जमा करते हैं जहां इन्हें करीने से चादर के रूप में सजाया जाता है। ग्रामीण पूरी रात भर इन फूलों की चादर के इर्द गिर्द पारंपरिक नृत्य रासौं, तांदी का आयोजन करते हैं। ‘सेलकू’ शब्द का अर्थ ‘सोएगा कौन’ से लगाया जाता है। पूरी रात भर होने वाले इस उत्सव में दूर दराज के ग्रामीणों के साथ ही गांव से अन्य गांवों में ब्याही बेटियां भी मायके पहुंचती है। पूरे रात भर के इस जश्न का समापन अगले दिन होता है जब गांव के ईष्ट आराध्य देवता अवतरित होकर धरधार कुल्हाड़ियों फरसे के ऊपर चलते हुए ग्रामीणों की समस्या का निदान बताता है।

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3 सितंबर से शुरू हो रहा सेलकू पर्व उत्तरकाशी जनपद के लाटा, सौरा, सारी, स्याबा, रैथल, गोरसाली, जखोल और गंगा के शीतकालीन प्रवास मुखबा में आयोजित किया जाता है। लाटा से शुरू होने वाला यह ‘हरियाली को अलविदा’ कहने का जश्न सबसे आखिर में मुखबा में आयोजित किया जाता है।

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