परिवार पालने को राशन की दुकान चलाने लगा था गढ़वाल का यह राजा
– अकाल, विनाशकारी भूकंप, गोरखा हमले के बाद बदहाल स्थिति में पहुंच गया था गढ़ राज्य, नई राजधानी में बसे राजा की आर्थिक हालत भी हो गई थी खराब
PEN POINT, DEHRADUN : टिहरी रियासत के पहले राजा को अपना परिवार का पेट पालने के लिए आटे चावल की दुकान चलानी पड़ी थी। गढ़वाल रियासत के प्रसिद्ध चित्रकार मौलाराम दावा करते हैं कि टिहरी राजधानी बनाने के दौरान गढ़वाल राजा की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि परिवार का पालन पोषण करने के लिए उन्हें दुकान चलानी पड़ी थी। हालांकि, बाद के सालों में राजपरिवार के पास आय के अन्य विकल्प खुले और राजकोष भरने लगा तो राज परिवार को फिर इस दुकान पर बैठने की नौबत नहीं आई। राजा के दुकान पर बैठने का जिक्र डॉ. शिव प्रसाद डबराल अपनी किताब टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास में भी करते हैं।
संवत 1852 यानि साल 1795 में गढ़वाल राज्य में भीषण अकाल पड़ा था। अकाल इतना भीषण था कि हजारों लोगों की मौत भूख से हो गई थी। लोग पहाड़ छोड़ पलायन कर गए और खुद को दास दासियों की मंडियों में बेचने लगे थे।यह अकाल कितना भीषण था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गढ़वाल में भूखमरी के लिए आज भी ‘बावनी’ शब्द प्रचलन में है यानि संवत 1852।
इस अकाल ने गढ़राज्य की हालत खराब कर दी थी। राजा प्रद्युम्नशाह के लिए अपने परिवार का लालन पालन करना तक कठिन हो गया था लेकिन इसी बच गढ़वाल पर एक और मुसीबत आ गई। अब तक संधि के हिसाब से गढ़ राज्य से दूर गोरखो के लिए यह अकाल भी गढ़राज्य पर हमला कर कब्जाने का बेहतर मौका लगा। गढ़ राज्य पर गोरखो के हमलों के बाद राज परिवार श्रीनगर से पलायन कर गया था। अपना राज्य वापिस पाने के लिए राजा प्रद्युम्नशाह ने गोरखो से युद्ध भी लड़ा लेकिन युद्ध में वह मारे गए। इसके बाद अगले एक दशक तक राज परिवार मैदानों में ही पलायन कर आश्रित रहा। अंग्रेजों द्वारा 1814 में गोरखाली सेना को हराकर उसे गढ़राज्य से खदेड़ने के बाद राज परिवार के लिए गढ़राज्य लौटने की राह खुल गई लेकिन अंग्रेजों ने गोरखों से गढ़राज्य को मुक्त करने के बदले गढ़राज्य का आधा हिस्सा अपने पास रख गया। अब राजा सुदर्शन शाह को नई राजधानी के रूप में टिहरी मिली। टिहरी में राजधानी निर्माण और नया शासन चलाना उसके लिए आसान न था। आर्थिकी बुरी तरह खराब थी, खजाने के नाम पर कुछ न था।
1815 में टिहरी में राजधानी बनाने के लिए राजा सुदर्शनशाह के पास संसाधन न थे। वहीं, टिहरी में राजा ने अपने निवास के लिए जो छोटा सा मकान बनाया था, उसमें उसके परिवार का रहना मुश्किल हो रहा था। राजा ने खजाने में राजस्व जुटाने और परिवार के भरण पोषण के लिए 700 रूपए का निवेश कर 30 मकान बनाए, जिनका प्रत्येक का किराया आने प्रति महीने का तय किया था। लेकिन, 1795 के भीषण अकाल, 1803 के विनाशकारी भूकंप के बाद गोरखों की लूट मार से कंगाल हो चुकी रियासत की जनता में ऐसा कोई भी नहीं बचा था जो चार आना देकर राजा द्वारा बनाए मकान को किराए पर ले सके।
गेरखा हमले के बाद बर्बाद हो चुके इस इलाके से राजस्व जुटने का कोई रास्ता न था। राजा सुदर्शनशाह के लिए अपने परिवार को राजसी ठाठ बाट देना तो दूर दो वक्त की रोजी रोटी का परिवार के लिए इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया था।
उस दौरान टिहरी के उस इलाके में कहीं भी दूर दूर तक आटे चावल की कोई दुकान नहीं थी। लोगों जो खेतों में उगाते वही खाने को मजबूर थे। लिहाजा, राजा ने टिहरी में एक आटे चावल की दुकान खोल दी। राजा अब राज दरबार चलाने के साथ ही खाली समय दुकान पर बैठता और दूर दराज से आने वाले ग्राहकों को आटा चावल बेचता।
हालांकि, यह क्रम कुछ ही सालों तक चला, जैसे जैसे टिहरी राजधानी के रूप में आकार लेने लगी और क्षेत्र गोरखा हमले के दिए सदमों से उबरने लगा तो राजा के लिए भी आय के नए स्रोत खुलने शुरू हुए। लेकिन, 1815 में टिहरी पहुंचने के बाद कुछ साल तक राजा सुदर्शन शाह के लिए इतने मुश्किल भरे रहे थे कि आज इस बात का यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि टिहरी रियासत का राजा परिवार के पालन पोषण को दुकान चलाया करता था।