परमाणु बम त्रासदी का इस पायलट को था पछतावा, मदद के लिये देहरादून को भी चुना
Pen Point, Dehradun : अगस्त माह की 6 और 9 तारीख मानव सभ्यता के इतिहास में काले पन्नों के रूप में दर्ज हैं। 6 अगस्त को जापान के हिरोशिमा और 9 अगस्त को नागासाकी में परमाणु बम गिराए गए थे। अमेरिका और इंग्लैंड की गुटबंदी वाले बमवर्षक विमानों ने इस तबाही को अंजाम दिया था। जिनकी देखरेख का जिम्मा युवा पायलट लियोनार्ड चेशायर का था। बतौर मिशन ऑब्जर्वर चेशायर ने ये तबाही काफी करीब से देखी थी। इसके कुछ समय बाद उसे सर्वोच्च सैन्य सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा गया। लेकिन परमाणु हमले की त्रासदी का उस पर ऐसा असर हुआ कि उसने फौज से किनारा करने की ठान ली। इंग्लैंड लौटने पर उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री ऐटली को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों के असर को बताया। जिसमें उसने शांति की कोशिशों और अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण जैसी शोध परियोजनाओं को बढ़ावा दिये जाने पर जोर दिया। अपनी चर्चित किताब बॅाबिंग पायलट में उसने लिखा है कि ऐटली उनकी बात से प्रभावित नहीं हुए। इस मुलाकात के बाद लियोनॉर्ड चेशायर मानसिक रूप से बीमार घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही उसकी फौज से भी छुट्टी हो गई।
समाज सेवा की राह पकड़ी
परमाणु हमले की त्रासदी से उपजी पीड़ा से लियोर्नार्ड चेशायर बेहद परेशान था। लिहाजा उसने समाज सेवा की राह पकड़ ली। उसने 1948 में चेशायर होम संस्था की स्थापना की। 1950 में मुंबई और उसके बाद देहरादून में भी चेशायर होम स्थापित हुए। जहां विकलांग लोगों की सेवा की जाती है। दुनियाभर के तीन सौ चेशायर होम विकलांगों और दीन दुखियों की सेवा कर रहे हैं। भारत में देहरादून समेत तीस शहरों में ये केंद्र हैं।
देहरादून में प्रीतम रोड पर एक पुराने भवन में एक बच्चे के साथ खुद लियोनार्ड चेशायर ने संस्था की शुरूआत की थी। यह देहरादून की सबसे पुरानी चैरिटेबल संस्थाओं में से एक है। मौजूदा समय में यहां 45 विकलांग और 40 बेसहारा महिलाएं रहती हैं।
बिना सरकारी मदद के चलता है
चेशायर होम बिना किसी सरकारी मदद के चलाया जाता है। हालांकि कई लोग गुप्त रूप से मदद करते हैं और अपने नाम का खुलासा नहीं करना चाहते। ऐसी ही कोशिशों से यहां मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों का उपचार और देख रेख की जाती है।
1950 में हनीमून के लिये चुना था देहरादून
चेशायर ने 1950 में भारत पहुंचकर सामाजिक कार्यों में लगी सू राइडर से शादी की थी। उसके बाद यह जोड़ा हनीमून के लिये देहरादून पहुंचा था। यहां पर उन्होंने दूसरा चेशायर होम स्थापित करने का फैसला किया। उस वक्त भारत में मुंबई में ही चेशायर होम खुला था। यहां सड़क से एक अनाथ और विकलांग बच्चे को उठाकर उसकी देखभाल की उन्होंने जिम्मेदारी ली। इसके साथ ही देहरादून चेशायर होम स्थापित हुआ। बताया जाता है कि देहरादून होम से चेशायर का काफी लगाव था।
राफेल अस्पताल भी स्थापित किया
चेशायर होम के अलावा देहरादून में लियोनार्ड चेशायर ने एक अपनी पत्नी के साथ राफेल होम की स्थापना भी की। जहां टीबी और कुष्ठ रोग के मरीजों का इलाज किया जाता है। बलबीर रोड के अंतिम छोर पर राफेल अस्पताल देहरादून की प्रमुख जगहों में से एक है।
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