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फिर विवादों में यूपी राजकीय निर्माण निगम

– 2017 में विवादों में आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने यूपी निर्माण निगम को नए काम देने पर लगाई थी रोक
– उत्तरकाशी में पॉलिटेक्निक भवन निर्माण के लिए तीन करोड़ रूपए से अधिक के भुगतान के बाद भी धरातल पर नहीं किया
PEN POINT, DEHRADUN : 2017 में चर्चाओं में रहने वाले उत्तर प्रदेश निर्माण निगम इन दिनों फिर चर्चाओं में है। आरोप है कि यूपी निर्माण निगम ने उत्तरकाशी के धनारी क्षेत्र में जिस पॉलिटेक्निक भवन निर्माण के नाम पर 8 सालों में तीन करोड़ रूपए का भुगतान किया वह भवन जमीन पर बना ही नहीं है। भवन तो दूर निर्माण स्थल पर निर्माण कार्य के लिए एक ईंट तक नहीं है। जबकि, आठ सालों में यूपी निर्माण निगम इस पॉलिटेक्निक निर्माण के लिए 3 करोड़ 14 लाख का भुगतान पा चुका है।
उत्तरकाशी के डुंडा प्रखंड स्थित गवाणा गांव में जहां पॉलिटेक्निक के भवन निर्माण के लिए 8 सालों में यूपी निर्माण निगम को तीन करोड़ रूपए से अधिक की धनराशि जारी की जा चुकी है वहां एक पत्थर भी नहीं लगा है। साल 2013 में पीपली में पॉलीटेक्निक कॉलेज के संचालन की स्वीकृति मिली थी। क्षेत्र में कॉलेज निर्माण के लिए धनारी के गवाणा गांव के 11 ग्रामीणों ने अपनी कृषि भूमि भी दान की। साल 2015 में भवन निर्माण का काम यूपी निर्माण निगम को दिया गया और निर्माण कार्य शुरू करवाने के लिए 2015 में ही दो करोड़ रूपए की धनराशि अवमुक्त भी की गई। उस दौर मंे राज्य में कांग्रेस सरकार सत्ता में थी और यूपी निर्माण निगम हरीश रावत सरकार की सबसे पसंदीदा निर्माणदायी एजेंसी बनी हुई थी। राज्य सरकार के महत्वपूर्ण योजनाओं के निर्माण का जिम्मा यूपी निर्माण निगम को सौंपा गया था। दो करोड़ रूपए मिलने के बावजूद यूपी निर्माण निगम ने गवाणा में पॉलीटेक्निकन भवन का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया। इसके बाद भाजपा सरकार आने के बाद यूपी निर्माण निगम विवादों में तो फंस गया और उसे नए निर्माण देने पर रोक लगा दी गई लेकिन जो निर्माण कार्य उसे मिले थे उनका ऑडिट करवाकर उन निर्माण कार्यों को जारी रखने जाने का फैसला लिया गया था। साल 2018 में फिर 1 करोड़ 14 लाख रूपए का भुगतान किया गया। यह देखे बगैर कि पूर्व में मिले दो करोड़ रूपए रूपए का उपयोग क्या किया गया फिर से शासन की ओर से एक करोड़ रूपए फिर जारी कर दिए गए। अब जब एक स्थानीय निवासी की ओर से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगने के बाद मामला खुला तो अब निर्माण निगम का दावा है कि वहां एक ढांचा खड़ा किया गया था लेकिन वह भूस्खलन से गायब हो गया। वहीं, प्राविधिक शिक्षा के निदेशक आरपी गुप्ता का कहना है कि निगम की ओर से बताया गया कि निर्माण स्थल पर भूस्खलन होने से निर्माण शुरू नहीं किया जा सका जबकि तीन करोड़ 14 लाख रूपए का भुगतान निगम को किया जा चुका है। वह कहते हैं कि निगम के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभागीय मंत्री से सिफारिश की जाएगी।

त्रिवेंद्र सरकार ने किया था राज्य से बाहर
अप्रैल 2017 में यूपी निर्माण निगम तब चर्चाओं में आया था यूपी निर्माण निगम के जीएम एसए शर्मा आयकर विभाग की छापेमारी में शर्मा की 600 करोड़ रूपए से अधिक की संपति का खुलासा हुआ। उसके बाद यूपी निर्माण निगम की ओर से निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के मामले खुलने लगे। इसके बाद सितंबर 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कैबिनेट ने यूपी निर्माण निगम को कोई नया कार्य न देने का फैसला लिया हालांकि निगम के 14 हजार करोड़ रूपए की निर्माणाधीन योजनाओं को जारी रखने का फैसला लिया। तो 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यूपी राजकीय निर्माण निगम को राज्य सरकार की निर्माणदायी संस्थाओं की सूची से बाहर कर दिया। इससे पहले फरवरी 2021 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यूपी निर्माण निगम के परियोजना प्रबंधक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए थे। मामला यह था कि रानीपुर झाल ज्वालापुर स्थित उत्तराखंड संस्कृत अकादमी में आवासीय परिसर का निर्माण किया जाना था। इसके लिए शासन की ओर से उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को 2.39 करोड़ रुपये में एग्रीमेंट कर ठेका दिया था। उत्तराखंड शासन ने पूरी रकम उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को अवमुक्त कर दी। कई बार काम के लिए मौखिक व लिखित निर्देश दिए, लेकिन काम पूरा नहीं किया गया।

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