तेलंगाना में “भैंस वाली बहन” की बेरोजगारी ने कराया सत्ता परिवर्तन !
Pen Point, Dehradun : बीते रविवार को आए चुनाव परिणामों में तेलंगाना ने कांग्रेस की उम्मीदों को बचाए रखा है। जहां वोटरों ने बीआरएस को सत्ता से बेदखल कर दिया। मोटे तौर पर बीआरएस की इस हार की सबसे बड़ी वजह रोजगार के मामले में की गई वादाखिलाफी रही है। जिस तरह उत्तराखंड में बॉबी पंवार की अगुआई में रोजगार को लेकर बीते दो साल से काफी मुखर हैं, ठीक उसी तरह तेलंगाना में भी 25 वर्षीय बब्बूरी शिरिसा बेरोजगारों की आवाज बनी। रोजगार ना मिलने से निराश सिरिशा ने अपने गांव जाकर भैंस पालना शुरू कर दिया था। जिसके लिये उन्हें भैंस वाली बहन भी कहा जाने लगा। तेलंगाना में उन्हें अशांति का प्रतीक कहा जाता है और उन पर बीआरएस सरकार मुकदमे भी दर्ज कर चुकी है।
सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी जताने के लिये सिरशा खुद भी कोल्लापुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ी। जहां कांग्रेस प्रत्याशी को बेहद मामूली अंतर से जीत मिली। चौथे नंबर पर रही बेहद गरीब प्रत्याशी सिरिषा को पांच हजार से ज्यादा वोट पड़े।
पहले सिरीशा हैदराबाद में रहते हुए सरकारी नौकरी के लिये तैयारी कर रही थी। लेकिन लंबे समय तक भर्तियां स्थगित रहने के कारण वह परेशान हो गई। इसके बाद वह अपने गांव लौट गईं और भैंस पालने का काम शुरू कर दिया। बेरोजगारी से भैंस पालने की कहानी उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की ओर यह वायरल हो गई। पूरे राज्य से उन्हें बेरोजगारों का खूब समर्थन मिलने लगा। बात इतनी बढ़ गई कि बीआरएस सरकार ने उनके खिलाफ सरकार को बदनाम करने के मुकदमे दर्ज कर दिये।
गौरतलब है कि तेलंगाना आंदोलन के प्रमुख मुद्दों में पानी और नई सरकारी नौकरियों की बात शामिल थी। इसी बात को लेकर बीआरएस सरकार सबसे ज्यादा आलोचना का शिकार हुई। लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। तेलंगाना से प्रकाशित अखबारों के मुताबिक पिछले 10 सालों में राज्य सिविल सेवा के ग्रुप वन में एक भी नौकरी सृजित नहीं हुई है। लेकिन राज्य में जिलों की संख्या जो साल 2014 में 10 थी, अब बढ़कर 33 हो गई है। राज्य के अधिकतर विश्वविद्यालयों में कुल कर्मचारियों के मात्र एक तिहाई के साथ काम कर रहे हैं।
देखना यह है कि उत्तराखंड में रोजगार को लेकर चल रहा युवाओं का आंदोलन क्या सियासी रंग दिखाता है। तेलंगाना की तरह ही यहां भी युवा आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज हुए हैं और उन्हें अशांति का प्रतीक मानते हुए गिरफ्तारियां भी हुई हैं। भर्ती घोटालों के बाद उत्तराखंड के युवाओं में गुस्सा है। माना जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इस बात का असर नजर आ सकता है।