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मिजोरम के अनोखे चुनाव, जहां प्रत्याशियों को नहीं पैसे खर्च करने की अनुमति

– साल 2008 में हुए समझौते के अनुरूप प्रत्याशी धनबल के जोर पर नहीं करता है अपना प्रचार, पोस्टर और बैनर से प्रचार करने पर भी है रोक, अनोखे तरह से होता है चुनावी प्रचार
PEN POINT, DEHRADUN : दस लाख की आबादी वाले भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों के लिए चुनावी प्रक्रिया चल रही है। यहां 4 दिसंबर को मतदान होने हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलांगाना और मिजोरम में हो रहे विधानसभा चुनावों में मिजोरम में चुनावी माहौल सबसे अलग और अनोखा है। बाकी देश की तरह चुनावों के दौरान बेतहाशा पैसे का तमाशा और जोर शोर के प्रचार प्रसार से अलग मिजोरम में चुनावी शोर पूरी तरह से गायब है। यहां न दीवारों पर प्रत्याशियों के पोस्टर दिखते हैं, न गली मोहल्लों में प्रत्याशियों के साथ प्रचार करते कार्यकर्ता दिखते है। चुनावी शोर शराबे से अगल मिजोरम में हो रहे चुनाव एक ऐसे समझौते का पालन कर रहे हैं जो चुनाव से उन बुराईयों को दूर करने के लिए लागू किया जिन बुराईयों के चलते देश में चुनाव बेहद महंगे और बदनाम हो रहे हैं।
देश के छत्तसीगढ़, तेलांगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा चुनाव का प्रचार प्रसार चरम पर है। महीने भर के भीतर यह राज्य नई सरकार चुनेंगे लिहाजा चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय दलों समेत क्षेत्रीय दल भी साम दाम दंड भेद की नीति पर खूब जोर शोर से प्रचार प्रसार में लगे हुए है। लेकिन, मिजोरम में हालात अलग है। यहां न तो चुनावी शोर सुनाई देता है न ही धन बल का प्रदर्शन दिखता है जो देश के अन्य हिस्सों में चुनावों के दौरान बहुत आम सा हो गया है। मिजोरम में इसके उलट चुनावी मैदान में दम ठोंक रहे प्रत्याशियों को जनता के सम्मेलन में हिस्सा लेकर अपनी योजनाएं बतानी पड़ती है, मतदाताओं के तीखे सवालों का जवाब देना पड़ता और वह भी बिना शोर शराबे के। यह कुछ कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान होने वाले प्रेसिडेंशिल डिबेट के जैसे है तो कुछ सालों पहले तक कॉलेजों में होने वाले छात्रसंघ चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा सार्वजनिक मंच पर खड़े होकर छात्रों के बीच अपनी योजनाओं, कॉलेज की समस्याओं और उसके निस्तारण की योजनाओं के बारे में बताने जैसा है।
असल में मिजोरम में साल 2008 से पहले चुनावों के दौरान ठीक वैसा ही माहौल था जैसा देश के अन्य हिस्सों में होता है। लेकिन, लंबे समय में प्रदेश में चुनावी माहौल को सुधारने के काम में जुटे लोगों को आखिरकार सफलता मिली और 2008 में एक ऐसा समझौता तैयार हुआ जिसमें यह नियम लागू कर दिए गए। साल 2008 में नागरिक समाज, चर्च के संगठनों और राजनीतिक दलों के बीच पहली बार एक समझौता हुआ था। पांच पन्नों का यह समझौता ही पिछले पंद्रह सालों से यहां चुनाव संचालन का मार्गदर्शन कर रहा है। समझौते का उद्देश्य साफ था कि मिजोरम के चुनाव में धन और बाहुबल के प्रभाव को कम कर स्वच्छ और शांत चुनाव सुनिश्चित करना। द मिजोरम पिपुल फोरम इस पूरी प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है। यह आम नागरिकों, चर्च संगठनों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का संगठन है जिसका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि चुनाव की प्रक्रिया 2008 में हुए समझौते के तहत हो। चुनावी प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव के लिए इस संगठन की दुनिया भर में तारीफ भी होती रही है। इन दिनों चुनावी माहौल के बीच दी मिज़ोरम पीपुल फोरम (एमपीएफ) चुनाव क्षेत्रों में साझा मंच कार्यक्रम आयोजित करता है, इसमें उम्मीदवार बारी-बारी से मतदाताओं के सामने अपनी बात रखते हैं। इस दौरान मतदाताओं को भी उनसे सवाल पूछने का मौका मिल जाता है। ऐसे साझा मंचों के आयोजन का समय भी खास है, इस मंच में ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए दी मिजोरम पीपुल फोरम इसे शाम के वक्त आयोजित करता है जिससे लोग दिन भर के काम से फारिग होकर इसमें हिस्सा ले सके।
वहीं, 2008 में हुए समझौते में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्याशी और राजनीतिक दल कितनी संख्या में और कहां कहां पोस्टर बैनर लगा सकते हैं यहां तक कि पार्टी कार्यालयों और चुनाव कार्यालयों के लिए भी यह नियम लागू हैं। हालांकि, कोई प्रत्याशी इसका उल्लघंन करता है तो इस समझौते में कोई कानूनी प्रावधान नहीं है क्योंकि यह सामाजिक संगठनों का अपना समझौता लेकिन यदि कोई पार्टी या प्रत्याशी समझौते का उल्लघंन कर जोर शोर से प्रचार प्रसार, धन और बाहुबल से चुनावी प्रचार करता है तो नागरिक संगठन चुनावी सभाओं में उस प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार करते हैं। साथ ही, जो मतदाता प्रत्याशी से किसी तरह का प्रलोभन स्वीकार करता है तो संगठन उसका प्रचार भी मतदाताओं के बीच करता है जिससे सामाजिक शर्म की वजह से मतदाता प्रत्याशियों से किसी तरह का प्रलोभन लेने से बचें।

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