देश में सबसे ज्यादा सुरंगों वाला राज्य बनेगा उत्तराखंड
-अगले एक दशक में उत्तराखंड में होंगी 84 सुरंगे, रेलवे लाइन निर्माण से लेकर हाईवे पर भी निर्माणाधीन व प्रस्तावित हैं दर्जनों सुरंगे
उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल हादसे ने राज्य में बन रहे सभी टनल प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े कर दिए हैं। गौरतलब है कि राज्य में ऑल वैदर रोड, रेलवे और अन्य निर्माण कार्यों के लिये बड़े पैमाने पर सुरंगों का निर्माण जारी है। जबकि कई सुरंगें प्रस्तावित हैं। अनुमान है कि अगले दस साल में उत्तराखंड दुनिया में सबसे ज्यादा सुरंगों के जाल वाला राज्य बन जाएगा। वहीं, यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो देश की सबसे लंबी सुरंग रेलवे लाइन का निर्माण भी राज्य में ही होना प्रस्तावित है। ऐसे में सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद सुरंगों के निर्माण की जरूरत और इसमें शामिल जोखिमों को लेकर बहस को फिर से शुरू हो गई है।
राज्य में अब तक बनी सुरंगों पर नजर डालें तो बीते 31 अक्टूबर को ऋषिकेश बदरीनाथ और रूद्रप्रयाग गौरीकुंड हाईवे को जोड़ने के लिए निर्माणाधीन 950 मीटर सुरंग के निर्माण का पहला चरण पूरा हुआ था। इससे पूर्व दो साल पहले गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर चंबा बाजार को बाईपास करते हुए सुरंग से आवाजाही शुरू करवाई गई। दीपावली के मौके पर ही देहरादून दिल्ली हाईवे पर मोहंड के समीप भी नवनिर्मित सुरंग से आवाजाही बहाल कर दी गई।
जबकि, निर्माणाधीन 125 किमी लंबी ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन में 104 किमी लंबाई की 17 सुरंगों का निर्माण कार्य चल रहा है। वहीं, दूसरी ओर गंगोत्री यमुनोत्री को रेलवे लाइन से जोड़ने के लिए प्रस्तावित 121 किमी लंबी रेल लाइन की डीपीआर तैयार की गई है, इस योजना में प्रस्तावित दूरी का 70 फीसदी हिस्से में रेल सुरंगों से गुजरेगी। 121 किमी लंबी प्रस्तावित इस लाइन में 20 सुरंगों का निर्माण प्रस्तावित है। वहीं, दूसरी ओर राज्य सरकार देहरादून से टिहरी को भी सुरंग से जोड़ने का प्रस्ताव तैयार कर चुकी है जिसे केंद्र की ओर से औपचारिक स्वीकृति भी मिल चुकी है।
इस लिहाज से देखे तो अगले एक दशक में उत्तराखंड में परिवहन के लिए जितनी सुरंगों का निर्माण हो रहा है वह देश में सर्वाधिक होगा। लेकिन, हाल ही में सिलक्यारा में हुए निर्माणाधीन सुरंग हादसे के बाद सुरंगों के इतने बड़े नेटवर्क पर सवाल उठने लगे हैं। उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में निर्माणदायी एजेंसी की ओर से संभावित खतरों को नजरअंदाज कर निर्माण कार्य करवाने के आरोप लग रहे हैं। निर्माणाधीन सुरंग को जल्द ही आर पार होना था और मार्च 2024 में इस सुरंग से आवाजाही शुरू करने की योजना थी लेकिन बीती दीपावली की सुबह ही मजदूरों की शिफ्टिंग के वक्त सुरंग के शुरूआती दो सौ मीटर के हिस्से में भारी भूस्खलन हो गया जिसके चलते 40 मजदूर पिछले सौ से भी अधिक घंटों से सुरंग के अंदर फंसे हैं, जिन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पिछले छह दिनों से स्थानीय प्रशासन के साथ ही एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, सेना भी जुटी है लेकिन अब तक सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर नहीं निकाला जा सका है।
प्राकृतिक आपदाओं, भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील इस राज्य में हमेशा से ही बड़ी सुरंगों, बड़ी परियोजनाओं के निर्माण सवालों के घेरे में रहे हैं। राज्य में 200 से अधिक छोटी बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन, प्रस्तावित व पूरी हो चुकी हैं जिनमें ऐसी दर्जनों जल विद्युत परियोजनाएं है जिनके लिए 300 से अधिक सुरंगें खोदी गई हैं। हाल ही में जोशीमठ में हुए धंसाव के लिए भी जोशीमठ के समीप बन रही जल विद्युत परियोजना के लिए खोदी जा सुरंगों को जिम्मेदार बताया गया।
हालांकि, सरकार और विशेषज्ञ दावा करते रहे हैं कि राज्य में परिवहन के लिए सुरंगों का निर्माण ही सबसे बेहतर व सुरक्षित विकल्प है हालांकि, राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और आपदा के लिहाज से संवेदनशीलता के चलते इस सुरंगों के निर्माण के लिए सरकार और कुछ विशेषज्ञों की ओर से दिए जा रहे इन तर्कों में दम नहीं लगता।
नार्वे की तर्ज पर सुरंगों का जाल बिछाने की तैयारी
विशेषज्ञ मानते हैं कि सड़क और रेल नेटवर्क के लिए उत्तराखंड में सुरंगों का निर्माण जरूरी है। उनकी माने तो सुरंगों के निर्माण से हिमालय को ज्यादा खतरा नहीं है। वहीं, समय समय पर यह भी दावा किया जाता है कि 54 लाख की आबादी वाले 385207 वर्ग किमी में फैले नार्वे जैसे पहाड़ी देश में 900 से ज्यादा सुरंगों के जरिए सड़क और रेल परिवहन संचालित होता है। ऐसे में उसी तर्ज पर उत्तराखंड में रेलवे और वाहनों की आवाजाही के लिए सुरंगों के जाल बिछाने की तैयारी है।