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सर्दियों में स्वाद और सेहत का खजाना है गहथ, जानिए इसकी खूबियां

Pen Point, Dehradun : अब जाड़ों का मौसम शुरू हो गया है। इस मौसम में गहत की दाल का उपयोग पहाड़ों में बढ़ जाता है। इसे अन्य दालों के साथ मिला कर भी बनाया जाता है। गहथ की दाल पथरी के रोग के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है। यह इस बेहद पीड़ा दायक रोग को नियतंत्रित करने में बड़ी कारगर साबित होती है। अंकुरित गहथ से चाट भी बनाई जाती है। गहथ अपने आप में बेहद स्वादिष्ट होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा काफी होती है। इसे बनाने में बहुत कम तेल उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में जिन लोगों के लिए स्वास्थ्य के लिहाज से तेल खाने के मनाही होती है, वे गहथ के दाल की चाट का स्वाद ले सकते हैं। सुबह के नाश्ते में गहथ की दाल की चाट बेहद स्वास्थ्यवर्द्धक होती है। यह बनाने में भी काफी आसान है। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कुलथ यानी गहथ की दाल काफी मात्रा में उगाई जाती है, खास कर जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं, वहां इस दाल को अधिक मात्रा में उगाया जाता है।
इस दाल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के कारण बाजार में बहुत मांग है। इसकी सबसे अधिक मांग किडनी पथरी से परेशान रोगियों के लिए होती है। किडनी में होने वाली पथरी के लिए गहत की दाल का इस्तेमाल बहुत लम्बे वक्त से किया जा रहा है। यह एक तरस से किडनी पथरी के लिए वैकल्पिक दवा के रूप में बेहद चर्चित है। इस दाल को एंटीऑक्सीडेंट यानि शरीर की गन्दगी को बाहर निकालने में बेहद कारगर माना जाता है।

गहथ को एक कारगर मूत्रवर्द्धक (पेशाब को बढ़ावा देने वाला) के रूप में काम करती है, इसी प्रक्रिया में किडनी की पथरी पेशाब के साथ कट कर बहार निकल आती है, जिसका पता कई बार साफ तौर पर चल जाता है। इसके अलावा डायबिटिक रोगियों के लिए भी कुल्थी की दाल लाभकारी बताई जाती है। कुल्थी हार्स ग्राम एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण इसका यही गुण मधुमेह को नियंत्रित करने में मददगार होता है। इसके अलावा कुल्थी दाल रेजिस्टेंस स्टार्च से भी भरपूर होती है। यह कार्बाेहाइड्रेड के पाचन को धीरा करके और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को काम करके पोस्टपेडिअल हाइपरग्लायसीमिया (खाने के बाद ब्लड शुगर की अधिकता ) को काम कर सकती है।

इस दाल में बहुत ज्यादा फाइबर की मात्रा पाई जाती है। इससे शरीर के अनावश्यक बढ़ते वजन को कम करने में सहायता मिलती है। एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, फाइबर युक्त खाने की चीजें मोटापे के बढ़ते स्तर को घटाने का कम कर सकते हैं वहीं, इसमें मौजूद स्टार्च का पाचन बहुत धीमे होता है, इसलिए जल्दी भूख नहीं लगती। इसके अलावा गहत फैट को जलाने का काम करता है। कुल मिलकर कहा जा सकता है कि बढ़ते मोटापे से परेशाना लोग इस लाभकारी दाल को अपने खाने का और सूप को पीने में शामिल कर अपनी इस समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं।

गहथ की दाल के बारे में कहा जाता है कि यह ख़राब और अच्छे कोलेस्ट्रॉल पर अलग अलग असर डालती है। जहां यह ख़राब कोलेस्ट्रॉल को कम करने का काम करती है वहीं अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मददगार होती है। वहीं डायरिया जैसी बीमारी में भी गहथ को कारगर माना गया है। इस दाल में फ्लेवोनॉयड जैसे तत्वों से भरपूर होती है। जिस कारण यह दाल एंटी डायरिया के तौर पर काम करती है। इतना ही नहीं इसमें अल्सर जैसी बीमारी से भी राहत दिलाने की गुण मौजूद है। फाइबर की मात्रा अधिक होने के कारण कहा जा सकता है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पेट के अल्सर से पीड़ित मरीजों को फाइबर युक्त आहार खाने की सलाह देता है। क्योंकि फाइबर पेट की सूजन और गैस्ट्रोइंटस्टाइनल ट्रैक्ट में होने वाले दर्द को कम कर पेट के अल्सर के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा सर्दी और बुखार जैसी शारीरिक परेशानियों के लिए भी गहत की दाल के फायदे देखे जा सकते हैं। इसके लिए इस दाल का उपयोग सदियों से किया जाता रहा है। इससे सर्दियों में होने वाले गले के संक्रमण से भी रहत मिलती है। क्योंकि इस दाल की तासीर गर्म होती है ऐसे में इस सर्दी-खांसी जैसी ामा समस्यसों में खूब इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि इसका इस्तेमाल सर्दियों के मौसम में ज्यादा किया जाता है।

अगर आप एक हेल्दी स्नैक खाना चाहते हैं तो घर में बनाएं गहत स्प्राउट चाट। 1 कप अंकुरित गहथ, 1 कप काले सोयाबीन, 1 कप पनीर, एक छोटी गड्ढ़ी हरा धनिया, टुकड़ों में कटी हुई हरी मिर्च स्वाद के मुताबिक, एक कप प्याज टुकड़ों में बारीक कटा हुआ, एक कप बारीक कटा हुआ टमाटर, डेढ़ टी स्पून नमक स्वाद के अनुरूप, दो टी स्पून चाट मसाला, एक छूटा चम्मच भुना हुआ जीरा , नीम्बू स्वाद अनुरूप।

इसके अलावा गहत की गथ्वाणी भी बनाई जाती है उत्तराखंड में : 

इसके लिए गहथ को साबुत छान लेना चाहिए, क्योंकि इस दाल में खेत से कुछ मात्रा में कंकड़ शामिल हो सकते हैं। पत्थर के रंग के होने के कारण यह दाल में छानने में थोड़ा मुश्किल होती है। अब इसे धो लें और अच्छे से इसे उबालें। पकने पर इसे करछी से घोटें ताकि गहत थोड़ा गधा हो जाय। लोहे की कढ़ाई में तेल या घी डालकर सामन्य दाल की तरह प्याज, लहसुन , चोरा व जीरे का छौंका लगाएं। नामा-मिर्च, धनिया मसाला डालें, गर्म मसाला नहीं डालना चाहिए क्योंकि गहथ खुद ही गर्म होता है। अब आजकल सर्दी का मौसम शुरू होने लगा है ऐसे में गहथ की दाल खाने का चलन पहाड़ों में स्वतः बढ़ने लगता है। भात और झंगोरे के साथ गथ्वाणी का स्वाद बेहद मजेदार होता है। गथ्वाणी का स्वाद थोड़ा अलग होता है , हल्का खट्टापन भी इसमें महसूस होता है। इसे पहाड़ों में बहतयात में सर्दियों में इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि सर्दी और बर्फ के दिनों में इससे ठण्ड कोसों दूर भाग जाती है।

गहथ से बनता है फाणू : खाओगे तो खाते रह जाओगे

फाणू बनाने के लिए गहथ को रात में पानी में अच्छे से भिगोने रख दिया जाता है। भीगे गहथ को सिलबट्टे या मिक्सी में मसीटा बनाया जाता है। थोड़ा गाढ़ा मसीटा छोटी-छोटी पकोड़ी बनाने के लिए अलग रख दिया जाता है। उसमें अपने स्वाद के अनुसार नमक, मिर्च , धनिया मिला लें। इसके अलावा बाकी मसीटा को पानी में घोलकर रख लिया जाता है। इसके बाद लोहे की कढ़ाई को चूल्हे पर रख कर उसमें घी या तेल डालें। इसके बाद गर्म होने पर उसमें जख्या या जीरा डालें और गाढ़े मसीटे की छोटी-छोटी पकोड़ी तलें ठीक, उसी तरह जैसे कढ़ी के लिए पकोड़े बनते हैं। छोटी-छोटी पकोड़ी तैयार होने पर अलग रख लें। इन्हें फाणा तैयार होने के बाद उतारते समय डालना है। गर्म तेल में प्याज लहसु का तड़का डालें, चोरा का तड़का हो तो फिर कहना ही क्या। धनिया जीरे का मसाला मिर्च और नमक स्वाद अनुसार डालें। ग्रम मसाला भूल कर न डालें। जरूरत के अनुसार पानी एक बार ही डाल दें और मध्यम आंच में फाणू पकाएं। सावधानी इतनी रखनी है कि फाणा कढ़ाही के तल पर न चिपके। इसलिए बार-बार करछी से हिलाते रहें। फाणा गाढ़ा होता जाएगा। जब फाणा का रंग काला और हल्का गाढ़ा होने लगे तो समझो तैयार हो गया है। कढ़ाई नीच उतारने से पहले उसमें पहले से तैयार पकोड़े डाल दें और हाँ थोड़ा छांछ-मठ्ठा या दही उपलब्ध हो तो उसे भी डालिये। यदि यह उपलब्ध न हो तो नीम्बू का रस निचोड़ें ।

गहथ की भरवां रोटी, में भरपूर प्रोटीन पाया जाता है व ठण्ड के सीजन में सूप पीने से गुइड पथरी, मात्रा विकार जड़ से ख़त्म हो जाते हैं। अत्यधिक ठण्ड के दिनों में शरीर को गरम रखने के लिए सबसे फायदेमंद दाल है।

गहथ की खेती :
कम बारिस वाले इलाके में कमजोर भूमि पर इसकी ख्ेाती की जा सकती है। उत्तराखंड में इसकी खेती सम्पूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में की जाती है। गहथ की फसल 100 से 130 दिनों के अंतराल में तैयार हो जाती है। 6 से 12 कुंतल प्रति हैक्टेयर तक इसका उत्पादन किया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्र में गहथ दलहनी फसल के रूप में होती है। उत्तराखंड राज्य गहथ का मौजूदा उत्पादन 109.27 मीट्रिक टन है।

गहथ में पोषक तत्व : 
गहथ में प्रोटीन की मात्रा प्रति 100 ग्राम में 22 मिली ग्राम, कॉर्बाेहाइड्रेट 57 मिलीग्राम, फास्फोरस 311 मिली ग्राम, आयरन 7 मिलीग्राम , कैल्सियम 287 मिली ग्राम तथा कैलोरडोफिक वैल्यू 100 ग्राम में 321 मिली ग्राम पाई जाती है।

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