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रामायण और उत्तराखंड : दशरथ का डांडा में हुई थी श्रवण कुमार की मृत्यु !

Pen Point, Dehradun : शारदीय नवरात्रों के साथ ही रामलीला मंचन का सिलसिला भी शुरू हो गया है। उत्तराखंड में भी रामलीला मंचन की परंपरा रही है। भगवान राम के प्रति अगाध आस्था के चलते देवभूमि भी रामायण के असर से अछूती नहीं है। रामायण से जुड़ी कई स्थान और मान्यताएं यहां मौजूद हैं। ऐसे ही स्थानों और मान्यताओं को रामलीला सिरीज के जरिए पेन प्वाइंट आपको बता रहा है। सबसे पहले बात करते हैं दशरथ के डांडा की।

दशरथ का डांडा देवप्रयाग और ऋषिकेश के बीच उंचाई पर स्थित एक जंगल है। इसके नाम से ही प्रतीत होता है कि इसका त्रेतायुग के प्रसिद्ध राजा दशरथ से कुछ संबंध रहा होगा। मान्यता के अनुसार श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड़ में तीर्थ यात्रा करवाकर लौट रहे थे। इसी जंगल से कुछ दूरी पर वो नदी के पास रूके। कहा जाता है कि श्रवण कुमार अपने माता पिता के लिये नदी से पानी भर रहे थे। तभी राजा दशरथ भी जंगल में शिकार खेलने पहुंचे हुए थे। श्रवण कुमार के पानी भरने पर उन्हें हीरन के पानी पीने का भ्रम हुआ। जिस पर उन्होंने उस ओर तीर चला दिया। तीर के प्रहार से श्रवण कुमार कराह कर गिर पड़े। मनुष्य के कराहने की आवाज सुन राजा दशरथ वहां पहुंचे और श्रवण से क्षमा चाहते हुए कहा कि मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई बेटा। जिस पर श्रवण कुमार ने कहा कि मेरे माता पिता बहुत प्यासे है और वो ज्यादा देर तक प्यास बरदाश्त नही कर पायेंगे। यह कहते ही श्रवण के प्राण पखेरू उड़ गए। राजा दशरथ घडे से भरे पानी लेकर श्रवण के माता पिता के पास पहुंचे। लेकिन किसी और की आहट सुनकर श्रवण के माता पिता बोले कि तुम श्रवण नही हो। बोलो कि तुम कौन हो तभी हम पानी पियेंगे। राजा दशरथ बोले कि आपके बेटे की मौत मेरे हाथो हो गई। आज से मै ही आपका श्रवण हूं। श्रवण के माता पिता अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुये। उन्होंने राजा दशरथ को यह श्राप दिया। कि तुम्हारी मृत्यु भी एक दिन पुत्र के वियोग मे होगी। यह कहकर दोनो मर गये। राजा दशरथ ने दुखी मन से तीनो का दाह संस्कार किया। राम को जब चौदह वर्ष का वनवास हुआ था। उस समय दशरथ की भी मृत्यु अपने पुत्र वियोग मे ही हुई थी। जिस स्थान पर श्रवण कुमार की मृत्यू हुई उसे नोलीधारा कहा जाता है।

दशरथ का डांडा इलाके में राजा दशरथ से जुड़े कुछ पुराने निशानों के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि अयोध्या के राजा दशरथ का साम्राज्य यहां तक फैला हुआ था। यही वजह है कि यही खेतुतप्पड़ भी है, जहां श्रवण कुमार के माता-पिता रुके थे।

टिहरी जिले में अलकनंदा नदी के बाईं ओर दशरथ का डांडा ट्रैक पर्यटकों के बीच भी काफी लोकप्रिय है। जिसके लिये पावकी देवी मंदिर तक वाहन से और उसके बीच चार से पांच किलोमीटर की पैदल ट्रैकिंग की जाती है। पावकी देवी मंदिर शक्ति पीठों में से एक है, जो देवी सती को समर्पित है और हर साल कई भक्त इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर को वागेश्वरी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का दाहिना पैर गिरा था।इस क्षेत्र में समुद्र तल से अधिकतम ऊंचाई 2750 मीटर है, जिसे रणाकोट बुग्याल कहा जाता है। दशरथ डांडा जंगल का सबसे उंचाई वाला स्थान रणाकोट बुग्याल ही है।चीड़ और बांज बुरांस के पेड़ों से गुलजार दशरथ का डांडा में हिमालयी हिरन, भालु और कई प्रकार के पक्षी चहलकदमी करते हैं।

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