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तिलोथ कांड : जब सरकार को देना पड़ा पांच गुना ज्यादा मुआवजा

PEN POINT, DEHRADUN : पंजाब हरियाणा के किसानों के दिल्ली कूच के चलते एक बार फिर किसान आंदोलन चर्चाओं में है। बीते सालों में देश समय समय बड़े और प्रभावी किसान आंदोलन का गवाह बना। अब फिर उत्तर भारत के किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच कर रहे हैं। वहीं, किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए केंद्र सरकार की ओर से सड़कों को ब्लॉक करने की जो तस्वीरे सामने आ रही है उससे साफ दिख रहा है कि सरकार किसानों को किसी भी कीमत पर दिल्ली आने से रोकने की जद्दोजहद में जुटा है। पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के इस आंदोलन के सामने सरकार झुकती दिख नहीं रही है लेकिन करीब पांच दशक पहले उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी किसानों के एक ऐसे आंदोलन का गवाह बना जिसमें किसानों की हिम्मत के सामने सरकार को भी घुटने टेकने पड़े और उनकी जमीनों का उन्हें पांच गुना ज्यादा मुआवजा देना पड़ा।

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उत्तरकाशी के प्रमुख कम्युनिस्ट नेता स्व. कमलाराम नौटियाल।

1960 में जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने टिहरी जनपद के भारत तिब्बत सीमा से सटे एक हिस्से को उत्तरकाशी जनपद के तौर पर गठन किया तो उसी दौरान गंगोत्री से निकलने वाली भागीरथी नदी पर एक जल विद्युत परियोजना के निर्माण की योजना भी बनाई। अगले एक दशक में इस योजना को धरातल पर उतारने की तैयारियां पूरी हुई। उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर गंगोत्री की तरफ मनेरी और जामक गांव के बीच बह रही भागीरथी नदी पर बांध बनाने का काम शुरू हुआ तो बिजली पैदा करने के लिए जिला मुख्यालय उत्तरकाशी सामने तिलोथ गांव को पावर हाउस निर्माण के लिए चयनित किया गया। 15 किमी लंबी सुरंगों के जरिए बांध के पानी को तिलोथ में बनने वाले पावर हाउस तक पहुंचाया जाना था। तिलोथ गांव गंगा नदी के तट पर बसा था और गांव के किनारे बहने वाली इंद्रावती नदी के जरिए सिंचाई व्यवस्था से जुड़े होने के कारण तिलोथ गांव की जमीन भी अच्छी उपजाउ थी। प्रशासन ने साल 1973 में इस जमीन का अधिग्रहण शुरू किया। इस उपजाउ जमीन के लिए किसानों को 300 रूपए प्रति नाली की दर से मुआवजा तय किया गया। लेकिन, किसान इस मुआवजे को कम बताकर इसे बढ़ाने की मांग कर रहे थे। कई बार किसानों ने प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन प्रशासन ने एक न सुनी।

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मुआवजे बढ़ाने की मांग को लेकर दौड़भाग कर रहे किसानों की उम्मीदें टूटने लगी थी। उसी दौरान उत्तरकाशी में जन आंदोलनों का सफल नेतृत्व करने वाले कम्युनिस्ट नेता कमला राम नौटियाल ने किसानों की इस मांग को आंदोलन में बदल दिया। अब किसानों के इस आंदोलन को नेतृत्व मिल चुका था। कामरेड कमला राम नौटियाल के तेवर से जिला प्रशासन वाकिफ था लिहाजा अब जमीनों के अधिग्रहण के काम में तेजी दिखाते हुए 25 अगस्त 1973 को निर्माणदायी एजेंसी हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को आदेश जारी किए गए कि वह अपने बुल्डोजर लेकर तिलोथ पहुंचे और वहां खेतों में खड़ी धान की सफल को रौंदकर जमीनों का अधिग्रहण सुनिश्चित करे। क्योंकि, किसानों की यह मांग अब आंदोलन में तब्दील हो चुकी थी तो संभावित टकरावत को देखते हुए कंपनी के साथ भारी पुलिस बल की भी तैनाती कर दी। तिलोथ में धान के खेतों में बुल्डोजर गरजते उससे पहले ही कमलाराम नौटियाल के नेतृत्व के गांव के डेढ़ सौ किसान मौके पर पहुंच गए और मुआवजे की राशि में बढ़ोत्तरी न होने तक अधिग्रहण का विरोध किया। मौके पर जिलाधिकारी समेत जिले के तमाम आला अधिकारी भी मौजूद थे। किसान बुल्डोजर के आगे डटे थे और मांग पूरी न होने तक खेतों के अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे। घंटों तक प्रशासन और किसानों के बीच तीखी बहस होती रही लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं थे। किसानों के हंगामे से गुस्साए तत्कालीन जिलाधिकारी ने विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोलीबारी के आदेश दे दिए। पीएसी जब तक गोलीबारी के हुक्म की तामील करती तब तक मौके पर मौजूद तत्कालीन पुलिस कप्तान गिरी राज शाह ने पीएसी गोलीबारी न करने का आदेश दिया। हालांकि, विवाद बढ़ता ही जा रहा था लेकिन पुलिस कप्तान की ओर से मिले आदेश के बाद पीएसी ने बंदूके नीचे कर दी तो किसानों का भी हौसला बढ़ गया। अब विवाद बढ़ता देख जिला प्रशासन को खेतों का कब्जा लिए बिना ही उल्टे पांव लौटना पड़ा। 90 मेगावाट क्षमता की इस जल विद्युत परियोजना में हो रही देरी के चलते राज्य सरकार की ओर से दबाव पढ़ने के बाद जिला प्रशासन ने फिर से किसानों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाया। प्रशासन के तेवर नरम पड़ने लगे और किसानांे में भी उम्मीद जगने लगी थी कि उन्हें उनकी जमीन का सम्मानजनक मुआवजा मिल सकेगा। लंबी बातचीत के बाद आखिरकार सरकार को किसानों को उनकी जमीन का 300 रूपए प्रति नाली की जगह 1500 रूपए प्रति नाली की दर से मुआवजे की घोषणा की गई। सरकार को अंदाजा हो गया था कि जो किसान गोलियां खाने को तैयार हो गए थे उनसे सस्ते में उनकी जमीन नहीं छीनी जा सकती। आजादी के बाद उत्तराखंड के किसी भी हिस्से में यह सबसे सफल किसान आंदोलन माना जाता है जहां किसानों के संघर्ष और जीवटता के चलते सरकार को उनकी जमीन का उन्हें पांच गुना ज्यादा मुआवजा देना पड़ा था।

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