Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • डोबरा चांटी पुल: जब दो लाख की आबादी की डेढ़ दशक लंबी काला पानी की सजा हुई खत्म

डोबरा चांटी पुल: जब दो लाख की आबादी की डेढ़ दशक लंबी काला पानी की सजा हुई खत्म

– डोबरा चांटी पुल आज प्रतापनगर क्षेत्र की दो लाख आबादी को मुख्यधारा से जोड़ने के साथ ही अपनी अनोखी बनावट के लिए पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है
PEN POINT, DEHRADUN : 4 अक्टूबर 2019, यह दिन टिहरी जनपद के प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों के लिए कभी न भूलने वाला दिन बना रहेगा। यही दिन था जब टिहरी बांध बनने की वजह से खुद को ‘काला पानी’ की सजा पाए कैदियों से तुलना करने वाले अलग थलग पड़े प्रतापनगर के आम जन मुख्यधारा से जुड़ सके थे। 2 हजार मेगावाट की क्षमता वाले टिहरी जल विद्युत परियोजना में विद्युत उत्पादन के लिए रोकी गई भागीरथी नदी की 42 किमी लंबी झील के उपर डोबरा नाम के स्थान पर करीब डेढ़ दशक बाद एक पुल पर टेस्टिंग शुरू हो रही थी। यही दिन था जब यह तय होना था कि यह पुल प्रतापनगर क्षेत्र की दो लाख से अधिक की आबादी को मुख्य धारा से जोड़ सकेगा या फिर यह इंतजार और लंबा होगा।
4 अक्टूबर ही वह दिन था जब डेढ़ दशक बाद और अरबों रूपए की लागत से बन रहे डोबरा चांठी पुल को आवाजाही के महत्वपूर्ण जांच प्रक्रिया से गुजरना था। साल 2005 में टिहरी बांध की झील के बनने के कारण प्रतापनगर के आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे। अब प्रतापनगर के निवासियों को जिला मुख्यालय समेत राजधानी तक की आवाजाही के लिए 50 से 60 किमी का अतिरिक्त सफर करना पड़ रहा था। झील बनने से यह इलाका अलग थलग पड़ गया था। जब टिहरी जल समाधि ले रहा था तो प्रतापनगर के अलग थलग पड़ने की आशंकाएं भी सच होने लगी थी। लिहाजा, स्थानीय निवासियों ने भारी विरोध प्रदर्शन भी शुरू किया। साल 2005 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने भारी जनदबाव के चलते प्रतापनगर को जोड़ने के लिए डोबरा चांटी पुल की स्वीकृति दी। 2006 की जनवरी में पुल के निर्माण का काम भी शुरू हो गया। तय था कि पुल को दो सालों यानि 2008 तक बनकर तैयार होना है। लेकिन निर्माण कार्य के बीच में ही पुल का डिजाइन बदलकर लंबाई 725 मीटर कर दी थी। इससे पुल की लागत भी एक अरब 25 करोड़ बढ़ गई। लिहाजा, पुल का निर्माण तय सीमा में होना नामुमकिन हो गया था। कारण था कि आईआईटी रूड़की ने डिजाएन एक साथ देने की बजाए अलग अलग चरणों में दिया लिहाजा निर्माणदायी एजेंसी भी स्वीकृत रकम और निर्धारित समयसीमा पर इसे पूरा करने में असफल रही। आईआईटी रूड़की की ओर से अलग अलग चरणों में डिजाएन दिया जा चुका था लेकिन साल 2012 के मार्च महीने में श्रीनगर के समीप चौरास में एक निर्माणाधीन पुल ध्वस्त हो गया। लिहाजा, डोबरा चांटी पुल के डिजायन को लेकर भी सावधानी बरतते हुए इसे क्रास चेक के लिए आईआईटी खड़गपुर भेजा गया। आईआईटी खड़गपुर के इंजीनियरों ने इस डिजायन में कई खामियां निकाल दी। लिहाजा, पुल का निर्माण फिर रोक दिया गया। फिर सरकार ने अक्तूबर 2014 में 10 करोड़ की लागत से कोरियाई योसिन इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कंसलटेंट कंपनी से डिजाइन तैयार करवाया। इससे पहले निर्माण के नाम पर केवल चार टॉवर और 260 मीटर एप्रोच पुल बनाने में ही एक अरब 25 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। कंसलटेंट ने पुल निर्माण हेतु एक अरब 75 करोड़ की डीपीआर सरकार देकर 75 करोड़ की धनराशि देकर फरवरी 2015 में फिर से काम शुरू करवाया। अगस्त 2017 तक पुल निर्माण का लक्ष्य रखा था, लेकिन विभिन्न कारणों से निर्माण पूरा नहीं हुआ। फिर राज्य सरकार ने 75 करोड़ निर्माण कार्य को और 15 करोड़ कंसलटेंट के अनुबंध बढ़ाने को दिया, लेकिन 2018 में पुल निर्माण के दौरान तीन सस्पेंडर टूट गए तो पुल के निर्माण, डिजाएन और गुणवत्ता फिर सवालों के घेरे में आ गए। लेकिन, 2019 के अगस्त महीने में मुख्य पुल आपस में जोड़ दिया गया। अब बारी थी पुल को आवाजाही के लिए सुरक्षित टेस्ट की। आखिरकर 4 अक्टूबर यानि आज के ही दिन 2019 में पुल पर आवाजाही का टेस्ट किया गया। पूरे इलाके की नजर इस टेस्टिंग पर थी। इस टेस्टिंग के सफल होते ही प्रतापनगर क्षेत्र का वह ‘कथित काले पानी’ की सजा भी खत्म हुई और वह मुख्यधारा से जुड़ गया। डोबरा-चांठी पुल के नाम एक और रेकार्ड भी दर्ज हुआ। यह पुल देश का सबसे पहला झूला पुल है, जिसकी लंबाई 725 मीटर है और जो भारी वाहन चलाने लायक बना है।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required