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उत्तराखंड में कहाँ स्थित है हँस्यूड़ी महादेव, जहाँ बेडू के पौधे को काटने पर बहने लगा था रक्त !

PEN POINT, DEHRADUN: हँस्यूड़ी महादेव जिसे हंसेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक प्राचीन लोकप्रिय मंदिर है। यह तहसील और ब्लॉक मुख्यालय थलीसैंण के निकट स्थित पूर्वी नयार नदी के दाहिनी ओर पहाड़ी पर एक समतल भूमि पर स्थित है. यह स्थान हंस्यूंड़ी गांव की सीमा में स्थित प्राकृतिक तौर से एक बेहद खूबसूरत जगह भी है। इस मंदिर का नाम इसी गाँव के नाम पर प्रचलित है।

यह इलाका अपने आप में खूबसूरत पहाड़ों और हरे भरे बांज बुरांस के जंगल से आच्छादित है। हँस्यूड़ी महादेव इलाके के दर्जनों गाँव के लोक अराध्य कहलाते हैं. इन गाँवों में पोखरी, पफपड़ियाणा, डोबर्या, मजगांव, भंडेली, क्वाटा, गंगाऊं, भीड़ा आदि शामिल हैं। हँस्यूड़ी महादेव मंदिर इस क्षेत्र के प्राचीन मंदिरों में सुमार है। यह मंदिर थलीसैंण क्षेत्र में बेहद प्रचलित सनातन आस्था का केंद्र है. यहाँ जिले के कई सुदरूर वर्ती क्षेत्रों से भक्त पुण्य अर्जित करने पहुंचते हैं। हंसेश्वर महादेव पर लोगों की गहरी आस्था है।

हँस्यूड़ी महादेव से जुडी हुई लोक कथा

कहा जाता है कि जिस जगह पर मंदिर स्थित है वहां जिस किसान का खेत था, खेती करने के दौरान खेत से सफाई करते वक्त वहां उपजे एक बेडू के पौधे को काट दिया गया। बता दें कि पहाड़ी इलाकों में बेडू बहुतायत में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक रूप से उगने वाला पौधा है, जिसके पेड़ बड़ी मंत्रा में गर्मियों के वक्त अपने फलों से लकदक हो जाते हैं। यह पेड़ पौधे के स्वरुप में भी फल देने लगता। अमूमन लोग इसकी पत्तियों को चारे और घास के रूप में भी पशुओं के लिए इस्तेमाल करते हैं। खेतों में यूही उगने वाले इस पौधे को अकसर लोग काट देते हैं। लेकिन अगर यह पौधा खेत के बीच में उग आये तो इसे समूल उखाड़ या काट दिया जाता है, ताकि कृषि पैदावार प्रभावित न हों।

लगता है, यही कारण रहा होगा कि इस कहानी के किरदार रहे किसान ने उस बेडू के पौधे को काट दिया। यह पौधा पत्ते या टहनियां काटने पर सफ़ीद दूध की तरह पदार्थ छोड़ता है। लेकिन इस घटना के मुताबिक यहाँ सफ़ेद दूध नुमा पदार्थ की जगह पौधे से रक्त बहने लगा, जिससे किसान कौतूहल में पड़ गया, जिसने उसे हतप्रभ कर दिया। किसान बेहद बेचैन और परेशान होने लगा। दिन भर उसे यह ख़याल बार-बार परेशान कर रहा था।

इसके बाद वह घर लौटा और शाम ढलने पर घर परिवार में मसगूल हो गया। उसी रात उसे सपना आया जिसमें, उन्हें एक चमत्कारी शक्ति ने चेतावनी दी कि भविष्य में इस पेड़ को न काटें और इसे हँसेश्वर महादेव के रूप में पूजें। सुबह होने पर उस ग्रामीण किसान ने यह बात परिवार और गाँव के लोगों के साथ साझा की। इस पर ग्रामीणों ने उस जगह पर पूजा अर्चना और धुप बत्ती करनी शुरू कर दी। धीरे धीरे वहां लोगों ने एक बड़े मंदिर के रूप में इस स्थान को विकसित कर लिया। जहां भगवान शिव को हँस्यूड़ी महादेव के रूप में पूजा जाने लगा है।

यहाँ शिवरात्रि के अलावा भी सालभर श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते रहते हैं। मंदिर परिसर के पास रसूली (देवदार) के विशाल वृक्ष इस जगह की खूबसूरती को और बेतहाशा बढ़ा देते हैं। इन पत्तियों को श्रद्धालु प्रसाद और शुभ मानते हुए अपने साथ घर ले जाते हैं। इसके अलावा महिलांए इन पत्तियों को अपने बालों में सजा लेती हैं। जबकि पुरुष इन्हें अपने कानों में के पीछे अटका लेते हैं। इन रसूली की पत्तियों और टहनियों को किसी भी धातु से बने हतियार से नहीं काटा जाता है। इसे तोड़ने के लिए लकड़ी का सहारा लिया जाता है। इसी की तलहटी में सदा नीरा पूर्वी नयार बह रही है। जो इस इलाके कि खुशहाली का प्रतीक है। इसके अलावा इस इलाके में कई खूबसूरत पैदल ट्रैक भी हैं।

यह हँस्यूड़ी महादेव मुरादाबाद-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग 309 से सटे हुए थलीसैण इलाके में पड़ता है। यदि आप पैदल ट्रैकिंग के शौक़ीन हैं तो यहाँ पहुंचने के लिए मजगांव से ऊपर करीब तीन किलो मीटर की चढ़ाई से आसानी पहुचं सकते हैं। इसके अलाव थलीसैंण से टैक्सी या अपने निजी वहां से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यहाँ के नजदीकी गांवों से मंदिर तक पहुंचने के कई शॉर्टकट रास्ते भी हैं, जिनसे यहाँ मंदिर में भगवान् शिव के दर्शनों के लिए पहुंचा जा सकता है।

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