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राम मंदिर : मंडल की तर्ज पर ही जातीय जनगणना की काट साबित होगा राम का नाम

– वीपी सरकार की ओर से लागू मंडल कमीशन की काट के तौर पर भाजपा ने शुरू की थी रथ यात्रा, जातियों में बंटे हिंदुओं को जोड़ने में रही सफल, अब विपक्षी दलों के जातीय जनगणना की काट के तौर पर माना जा रहा राम मंदिर
Pankaj Kushwal, Pen Point :  बीते सोमवार को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पूजा का आयोजन किया गया। बेहद भव्य तरीके से हुए इस कार्यक्रम का उत्साह पूरे देश और विदेशों में बसे हिंदुओं में खूब देखा गया। हिंदु धर्म के प्रमुख संतों की ओर से अधूरे निर्मित मंदिर में राम प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की भले ही आलोचना की गई लेकिन इस आलोचना को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र में रखकर इस आयोजन को हिंदुत्व के नए युग के प्रारंभ के तौर पर दिखाया गया। राम मंदिर निर्माण करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा विषय था लिहाजा इसको लेकर खूब उत्साह देखा जाना लाजमी भी था। राम मंदिर ने एक बार फिर साबित किया कि भाजपा का राम को लेकर प्रयोग हमेशा से ही जातियों, क्षेत्रों, समुदायों में बंटे हिंदुओं को एकजुट करने का सफल प्रयोग साबित रहा है। फिर बात चाहे मंडल कमीशन के लागू करने के दौरान जातीय खांचों में बंटे हिंदुओं को सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा के जरिए राम जन्मभूमि आंदोलन के जरिए एकजुट करने की हो या राम मंदिर का निर्माण पूरा कर बीते साल से जातीय जनगणना का बिगुल फूंक रहे विपक्षी दलों की कोशिशों को झटका देने से की हो।

बोफोर्स घोटालों समेत कई आरोपों से जूझ रही कांग्रेस को 1989 में हार मिली तो जनता दल समेत कई छोटे मोटे दलों को लेकर बनाए गए राष्ट्रीय मोर्चा के विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दिसंबर 1989 में प्रधानमंत्री की शपथ ली। रौचक यह था कि 1984 में महज दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने इस बीच राम मंदिर आंदोलन के जरिए जबरदस्त जनसमर्थन जुटाया था और 1989 में उसे 85 सीटें मिली थी और कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए भाजपा ने वीपी सिंह को समर्थन दिया था। सरकार बने अभी कुछ ही दिन गुजरे थे कि आरएसएस से जुड़े विश्व हिंदू परिषद ने घोषणा कर दी थी कि वह फरवरी 1990 तक राम मंदिर का निर्माण शुरू कर देगी। इस घोषणा को लेकर विभिन्न दलों के समर्थन से चल रही सरकार के गिरने का संकट खड़ा हो गया था लिहाजा भाजपा ने विश्व हिंदू परिषद ने यह अभियान अक्टूबर तक टालने का अनुरोध किया। जाट नेता देवीलाल सिंह ने 9 अगस्त 1990 को दिल्ली में प्रधानमंत्री के खिलाफ एक किसान रैली करने का एलान किया था। इस रैली में हिस्सा लेने के लिए लाखों किसानों के जुटने की उम्मीद थी। बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की जिद के चलते वीपी सिंह देवीलाल को सरकार से बाहर कर चुके थे लिहाजा वह भी शक्ति प्रदर्शन कर वीपी सिंह से बदला लेना चाह रहे थे।

9 अगस्त को इस संभावित बड़ी रैली की काट ढूंढते हुए वीपी सिंह ने 3743 अन्य पिछड़ी जातियों जो देश की आबादी का 52 फीसदी हिस्सा बनाते हैं उन्हें 27 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा करने वाली पूर्व में बनी जनता सरकार के दौरान मंडल कमीशन की 1980 में दी गई रिपोर्ट को 7 अगस्त 1989 को लागू करने की घोषणा कर दी। किसानों आंदोलन को रोकने की काट के रूप में लागू इस रिपोर्ट के चलते अब देश में अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण के अलावा ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने के बाद अब करीब 49.9 फीसदी आरक्षण लागू हो चुका था। इस फैसले का जहां पिछड़ी जातियों ने खुलकर समर्थन किया तो वहीं ऊंची जातियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। देश भर में जगह जगह हिंसक प्रदर्शन में सैकड़ों लोग मारे गए। सरकार का समर्थन कर रही भाजपा के लिए यह मुश्किल घड़ी थी वह मंडल कमीशन का विरोध कर पिछड़ों का समर्थन नहीं खोना चाहती थी तो समर्थन कर अपने पारंपरिक वोट ऊच्च सवर्ण जातियों को भी नाराज नहीं करना चाहती थी। पूरा देश जातीय हिंसक विरोध प्रदर्शनों की चपेट में था। ऐसे में भाजपा के सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति पैदा हो गई थी लेकिन संघ की मदद से उसने इससे निजात पाने और जातीय संघर्ष में बंटे हिंदू समाज को एक करने के लिए एक प्रयोग करने का फैसला लिया।

राम मंदिर निर्माण की घोषणा यूं तो विहिप पहले ही भाजपा और आरएसएस के अनुरोध पर अक्टूबर महीने तक टाले हुए था लेकिन मंडल कमीशन लागू होने के 19 दिन बाद ही संघ ने राम मंदिर निर्माण को लेकर विहिप के साथ बैठक शुरू कर दी। वहीं, दूसरी ओर तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अपने सहयोगी प्रमोद महाजन के साथ एक ऐसी अनूठी यात्रा की योजना बनाई जिसने मंडल कमीशन की वजह से ऊंची निची जातियों के संघर्ष बंटे हिंदुओं को एक होने का मौका दे दिया। 10 हजार किमी लंबी यात्रा की एक वाहन को रथनुमा आकार देकर 25 सितंबर 1990 से सोमनाथ मंदिर से शुरू कर दिया गया। आडवाणी और प्रमोद महाजन की अपेक्षाओं से परे इस यात्रा ने लोगों के मन पर गहरा असर डाला। विनय सेनापति अपनी किताब जुगलबंदी में इस यात्रा के अध्याय में लिखते हैं कि पत्रकार एमके वेणु यात्रा के साथ चल रहे थे और वह बताते हैं कि ढेर सारी महिलाएं घरों से निकलकर सड़कों के किनारे कांसे की थाली में दीया, फूल और सिक्के जैसी अनुष्ठानिक सामग्री लेकर खड़ी थी। मंदिरों की तरह आडवाणी के रथ पर महंगा चढ़ावा चढ़ रहा था। इस यात्रा के चलते कुछ महीनों पहले तक आरक्षण को लेकर एक दूसरे के प्रति विरोध प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं ने एकजुट होकर आंदोलन को समर्थन दिया जिसकी परिणती 1992 में बाबरी विध्वंस तक जारी रही। रथ यात्रा के जरिए मंडल कमीशन के दौरान उपजे गुस्से को खत्म करते हुए भाजपा ने दलित, पिछड़ी जातियों के साथ ही अपने पारंपरिक मतदाता उच्च जातियों को भी साध लिया था।

वहीं, बीते साल से जब कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जगह जगह घूमकर जातीय गणना की बात कर पिछड़ों, दलितों, वंचितों को उनकी आबादी के मुताबिक हिस्सेदारी देने की बात कर समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे थे तो इसके बाद भी देश में मंडल कमीशन के दूसरे चैप्टर के शुरू होने की आशंकाएं पैदा होने लगी थी। ओबीसी व दलित समुदाय जातीय गणना के समर्थन में जुटते दिख रहे थे तो उच्च जातियां इसके विरोध में। लिहाजा, एक बार फिर देश के सामने मंडल कमीशन के लागू होने के दौरान पैदा हुई स्थितियों की आहट सुनाई देने लगी थी लेकिन बीते दिनों से जिस आक्रामक ढंग से भाजपा ने राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रचार प्रसार किया और इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को हिंदुओं के नवजागरण काल का एक प्रमुख अध्याय स्थापित करने के प्रयास किए उसके बाद फिर से लगने लगा है कि इस बार भी भाजपा ने राम के जरिए जातियों में बंटने वाले वोट को एकजुट करने में सफलता हासिल करने की एक सफल कोशिश की है।

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