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चिंताजनक : हर साल 80 वर्ग किमी सिकुड़ रहे राज्य के जंगल

– वनाग्नि, अवैध कटान व परियोजनाओं के निर्माण में सिकुड़ रहा जंगलों का दायरा
PEN POINT DEHRADUN : उत्तराखंड राज्य देश के सर्वाधिक वनक्षेत्र वाले राज्यों में शुमार है। राज्य के कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी में से 38000 वर्ग किमी यानि 71 फीसदी वन क्षेत्र है। वन क्षेत्र के लिहाज से राज्य की स्थिति देश में आदर्श मानी जाती है लेकिन बीते सालों में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं, अवैध पातन और विकास योजनाओं के लिए वनों के कटान के चलते प्रदेश का वन क्षेत्र लगातार घट रहा है। वन विभाग के आंकड़ों की माने तो राज्य में सालाना 70 से 80 वर्ग किमी वन क्षेत्र कम हो रहा है।
उत्तराखंड में वन पंचायत और निजी क्षेत्र के अधीन आने वाले वन क्षेत्र हर साल तेजी से घट रहे हैं। राज्य में 7168 वर्ग किमी वन क्षेत्र वन पंचायतों के अधीन आता है जबकि 156 वर्ग किमी वन क्षेत्र निजी हाथों में है। वहीं, 25863 वर्ग किमी वन क्षेत्र वन विभाग के अधीन है तो शेष 4768 वर्ग वन क्षेत्र राजस्व के अधीन आता है। वन विभाग और राजस्व के अधीन आने वाले वन क्षेत्र तो फिलहाल संरक्षित माना जा रहा है लेकिन बीते सालों में वन पंचायतों और निजी क्षेत्रों के अधीन आने वाले वन क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहे है। साल दर साल 80 वर्ग किमी की गति से घट रहे वन पंचायतों और निजी क्षेत्रों के इन वन क्षेत्रों पर संकट मंडरा रहा है।

6 राष्ट्रीय पार्क में 4915 वर्ग किमी

भारतीय वन सर्वेक्षण  की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के सात जिलों में वन आवरण बढ़ा है, जबकि छह जिलों में वन आवरण में कमी है। जबकि बागेश्वर में 34, हरिद्वार में 27, नैनीताल में 66, रुद्रप्रयाग में 11, ऊधमसिंह नगर में 337 और उत्तरकाशी में 35 वर्ग किमी क्षेत्रफल में वन आवरण की कमी हुई है।

एक दशक से तेजी से जले हैं जंगल
वर्ष 2021 में बीते 12 वर्षों में सर्वाधिक आग की घटनाएं रिपोर्ट की गई थीं। हालांकि इससे ठीक एक वर्ष पहले 2020 में वनाग्नि की बीते 12 सालों में सबसे कम मात्र 135 घटनाएं दर्ज की गई थीं। तब इसके लिए कोराना के कारण लगे लॉकडाउन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही समय-समय पर बारिश भी होती रही। इससे पहले वर्ष 2012 में आग की 1328, वर्ष 2016 में 2074, वर्ष 2018 में 2150 और वर्ष 2019 में 2158 पांच बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं।

98 फीसदी मानव जनित होती वनाग्नि
वन विभाग के उच्च अधिकारी भी मानते हैं कि जंगल में आग लगने की वजह 98 फीसदी मानव जनित होती हैं। अक्सर ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, ताकि उसकी जगह पर नई घास उग सके। यह आग भड़क जाने पर बेकाबू हो जाती है। इसके अलावा राह चलते लोग, पर्यटकों की लापरवाही भी प्रदेश के जंगलों में आग की बड़ी वजह बनती है।

बीते 12 वर्षों में वनाग्नि की घटनाएं
वर्ष          घटनाएं          नुकसान (हे.)
2010       789            1610.82
2011       150             231.75
2012       1328          2823.89
2013        245            384.05
2014        515            930.33
2015        412            701.61
2016        2074          4433.75
2017        805            1244.64
2018        2150           4480.04
2019       2158            2981.55
2020       135              172.69
2021       2813             3943.88

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