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बछेंद्री पाल : एवरेस्ट की ऊंचाई से भी ऊंची हौसलों वाली पहाड़ की बेटी

– आज पहली भारतीय एवरेस्ट विजेता महिला मना रही अपना 69वां जन्मदिन, सुदूर उत्तरकाशी के नाकुरी गांव में हुआ था जन्म

PEN POINT, DEHRADUN : भारत तिब्बत सीमा से लगा जिला है उत्तरकाशी, उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से कुछ पंद्रह किमी पहले गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक छोटा सा गांव आता है नाकुरी, सामान्य सा पहाड़ी गांव और हाईवे से लगा होने के कारण कुछ दुकानें। जब कोई इस गांव से पहली बार गुजरता है तो सीमा सड़क संगठन की ओर से बनाया गया एक बोर्ड जिसमें एक महिला पहाड़ चढ़ रही है उसे देखकर किसी भी राहगीर को हैरानी होती है तो मालूम करने पर पता चलता है कि यह गांव एवरेस्ट फतेह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल का है। आज बछेंद्री पाल 69 साल की हो गई हैं, फिलहाल वह गांव में तो नहीं रहती है लेकिन पूछने पर गांव वाले इशारा कर उनके पुराने जर्जर हो चुके मकान के बारे में बताते हैं कि यहां बछेंद्री पाल रहा करती थी।
आज के ही दिन 24 मई 1954 को उत्तरकाशी जनपद के नाकुरी गांव में जन्मी बछेंद्री पाल के पिता का नाम किशनपाल सिंह और मां का नाम हंसा देवी था। बछेंद्री उनके पांच बच्चों में से एक थीं। बछेंद्री पाल के पिता किशन पाल सिंह भारत चीन युद्ध से पहले तक तिब्बत के साथ व्यापार करने वाले भोटिया समुदाय से संबंध रखते थे। चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण से पहले तक वह हर साल खच्चरों पर अनाज लादकर तिब्बत बेच आते थे और वहां से नमक, जड़ी बूटी, ऊन के सामान लेकर आते थे। भारत चीन युद्ध के बाद यह व्यापार पूरी तरह से बंद हो गया। तो वह स्थानीय स्तर पर ही काम काज करने लगे।
बछेंद्री पाल बपचन से ही पढ़ाई और खेलकूद में आगे थी। बछेंद्री पाल एक किस्सा बताती हैं कि वह 12 साल की उम्र में हर्षिल में अपने दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर निकल गई और चलते चलते ग्लेशियर तक पहुंच गई, वहां पहुंचने पर रात हो गई तो वापिस आना संभव न था। अपने दोस्तों के साथ पूरी रात उन्होंने उस ग्लेशियर इलाका जो समुद्रतल से 13 हजार फीट की उंचाई पर स्थित था वहां गुजारनी पड़ी। दोस्त ठंड, हाईपोथर्मिया, डिहाईड्रेशन, सिर दर्द, ऑक्सीजन की कमी जैसी मुश्किलों से पूरी रात भर जूझते रहे, सुबह हुई तो सब लोग नीचे उतरने लगे। लेकिन, बीती रात की मुसीबतों ने बछेंद्री पाल को रोमांच से भर दिया और उन्हें पहली बार लगा कि पर्वतारोहण कितना रोमांचक क्षेत्र है। हालांकि, जिस गांव में बछेंद्री पाल रहती थी वहां आम महिलाओं ने रोजाना ही पहाड़ों पर चढ़ना उतरना आम जिंदगी का हिस्सा था। मवेशियों के लिए चारा जुटाना हो या खाना पकाने को जलवान लकड़ियां एकत्र करनी हो महिलाएं रोजाना ही समुद्रतल से कई हजार फीट की ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर चढ़ती उतरती हैं। बछेंद्री पाल की रोजमर्रा की जिंदगी का भी यह हिस्सा था। आर्थिक तंगी के बीच बछेंद्री पाल ने मैट्रिक पास किया और फिर स्नातक किया। वह अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला थीं। स्नातक की डिग्री लेने के बाद बछेंद्री ने संस्कृत से परास्नातक किया। फिर बीएड किया। नौकरी नहीं मिली तो घर लौट आई।
उनका सपना पर्वतारोही बनने का था, हालांकि उनके परिवार यह नहीं चाहता था। इसके बावजूद बछेंद्री पाल ने उत्तरकाशी में पर्वतारोहण का कोर्स करवाने वाले नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में पर्वतारोहण कोर्स के लिए दाखिला लिया।पर्वतारोहण में रूचि जागने लगी तो भारत की ओर से एवरेस्ट अभियान के लिए बनाए जा रहे दल में बछेंद्री पाल को भी शामिल कर लिया गया।
मार्च 1984 को यह दल काठूमांडू पहुंचा और उसके बाद शुरू हुआ अगले तीन महीने तक एवरेस्ट पर फतेह करने की तैयारी। और 23 मई 1984 को अपने अन्य दो साथियों के साथ आखिरकार दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर बछेंद्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर थी और ऐसी उपलब्धि पाने वाली पहली भारतीय महिला बनी।
इस उपलब्धि के लिए बछेंद्री पाल को भारत सरकार की ओर से 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, 1994 में राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार, 2019 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने सफल एवरेस्ट अभियान के बाद बछेंद्री पाल ने दर्जनों अभियान की अगुवाई कर एवरेस्ट समेत दुनिया की कई पर्वतों पर सफल आरोहण किया और करवाया भी।

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