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दो दशक और 85 हजार से ज्यादा लोगों ने गंवाई प्राकृतिक आपदाओं में जान

-संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट का दावा, दो दशकों में 300 से भी ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं में गंवाई 85 हजार से भी ज्यादा लोगों ने अपनी जान
Pen Point, Dehradun : इन दिनों मानसून की बूंदे आफत बनकर बरस रही है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के चलते भूस्खलन, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते सप्ताह भर में ही 100 के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के चलते नदी नालों में आए उफान की डरावनी तस्वीरें सोशल मीडिया, मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंच रही है। कितने लोगों की मौतें हुई हैं इस पर भी संशय बना हुआ है। बीते दो दशकों में भारत ने प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से सबसे बुरा दौर देखा है। दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से भारत प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित देशों में शीर्ष तीन पर है। यह दावा संयुक्त राष्ट्र संघ आपदा न्यूनीकरण कार्यालय की रिपोर्ट भी करती है। तो साथ ही केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों से भी इसकी तस्दीक होती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से सबसे खतरनाक बारिश की बूंदे साबित हो रही है।
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साल 2000 से लेकर 2023 तक हर साल भारत के लिए प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से खतरनाक साबित हुआ है। वैज्ञानिक भी लगातार चेता रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज का सबसे बड़ा खामियाजा विकासशील देशों और गरीब देशों को भुगतना पड़ेगा। और पिछले दो दशकों में वैज्ञानिकों की यह आशंका सच्चाई में भी बदल रही है। यूएनडीआआर की रिपोर्ट की ही माने तो ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज के चलते भारत ने दो दशकों में हर साल औसतन बाढ़ से जुड़ी 17 प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है। यह रिपोर्ट बताती है कि दो दशकों में ही भारत में करीब 350 से भी अधिक प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, जिसमें सबसे ज्यादा भारी बारिश से बाढ़, भूस्खलन, भू धंसाव प्रमुख है, जबकि ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण समुद्रतल में हो रही बढ़ोत्तरी के चलते समुद्रतटीय क्षेत्रों में बसी आबादी के पानी में समाने का खतरा हर साल तेजी से बढ़ रहा है। दो दशकों में इन प्राकृतिक आपदाओं के चलते देश भर की करीब सवा सौ करोड़ से ज्यादा आबादी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। यह साल केदारनाथ आपदा की दसवीं बरसी का भी साल था। 2013 में मानसून आने की प्रस्तावित अवधि से करीब महीने भर पहले ही 15 जून को भारी बारिश से केदारनाथ धाम में बाढ़ आ गई। सरकारी आंकड़ें मानते हैं कि इस आपदा में करीब 6 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई थी जिसमें से करीब 5700 लोगों के शव तक नहीं मिल सके थे। हालांकि गैर सरकारी संस्थाएं लगातार दावे करती रही कि केदारनाथ त्रासदी में मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कई गुना ज्यादा है।
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केंद्र सरकार ने भी हाल ही में संसद में एक लिखित सवाल का जवाब देते हुए बताया था कि पिछले चार साल में ही बारिश, बाढ़, बादल फटने जैसी घटनाओं के चलते 7000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई। यानि बारिश की बूंदे देश में सबसे ज्यादा जिंदगी छीन रही है। पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा जिंदगी छीनने वाली आपदा के रूप में केदारनाथ त्रासदी का नाम दर्ज है तो केदारनाथ आपदा से 9 साल पहले आई सुनामी ने भी समुद्रतटीय क्षेत्रों में खूब हाहाकार मचाया था। सरकारी आंकड़ों की माने तो सुनामी की चपेट में आने से भारत के तटीय क्षेत्रों में 1310 लोगां की मौत हुई थी जबकि 5600 के करीब लोग समुद्र से उठी इन जानलेवा लहरों में खो गए थे। वहीं, 2012 में उत्तरकाशी में 3 अगस्त को भारी बारिश के बाद बादल फटने से भागीरथी नदी और असी गंगा नदी में आए उफान की चपेट में आने से सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई। हालांकि, इस लेख का लेखक इस त्रासदी का गवाह रहा था और तब जब गंगोत्री धाम की यात्रा चरम पर थी और ऐसे कई धर्मशाला और होटल भी गंगा नदी के उफान में गायब हो गए जहां कई तीर्थयात्री ठहरे थे, ऐसे में संभावना जताई गई कि इस उफान में सौ से भी अधिक लोगों की मौत हुई थी।

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