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Budget : कागजों में चमकते उत्तराखंड का बजट धरातल पर नहीं उतर पाता

उत्तराखंड राज्य का अगला बजट मार्च महीने के दूसरे पखवाड़े में होगा पेश, पिछला बजट खर्च करने में ही विभागों का दम फूला
ज्यादातर विभागों में 11 महीनों में पचास फीसदी से कम बजट ही हो सका खर्च
PEN POINT, DEHRADUN : राज्य सरकार मार्च महीने के दूसरे पखवाड़े की शुरूआत में राज्य के आगामी वित्त वर्ष का बजट पेश करने के लिए गेरसैंण स्थित भरारीसैंण में विधानसभा सत्र का आयोजन कर रही है। फिलहाल राज्य सरकार आगामी बजट की तैयारी में है लेकिन राज्य के कुछ विभाग ऐसे भी हैं जो इसी वित्तीय वर्ष में बजट खर्च करने में फिसड्डी रहे हैं। कुछ विभागों की हालत तो इतनी खराब है कि स्वीकृत बजट का एक पैसा भी खर्च नहीं कर सके। राज्य में गिनती के ही विभाग हैं जो अपने बजट को समयबद्ध तरीके से खर्च करने में सफल रह सके। इससे आप आंदाजा लगा सकते हैं कि राज्य का तंत्र राज्य के विकास के लिए किस तरह समर्पित होकर काम कर रहा है जबकि वह स्वीकृत बजट को ही खर्च करने में सफल नहीं हो पा रहा।
हर साल मार्च महीने में राज्य सरकार राज्य के विकास के लिए बजट पेश करती है। बजट पेश करते हुए राज्य के विकास की योजनाओं की एक सुनहरी तस्वीर सामने रखी जाती है। विभिन्न विकास योजनाओं के लिए करोड़ों रूपये का बजट स्वीकृत किया जाता है। लेकिन, साल भर बीतते बीतते यह ज्यादा विकास योजनाओं का बजट कागज से धरातल पर नहीं उतर पाता। विभागीय लापरवाही कहें या राज्य सरकार के सीमित आय के साधन, विकास योजनाओं के लिए धन जुटाना और विकास कार्यो के लिए स्वीकृत बजट का खर्च न हो पाना राज्य के विकास के लिए चिंता का विषय बन गया है। मौजूदा वित्तीय वर्ष समाप्त होने को है लेकिन राज्य के ज्यादातर विभाग अपने स्वीकृत बजट का आधा हिस्सा तक खर्च नहीं सके हैं। सचिवालय, विभागों के बीच कछुआ गति से चल रही विकास कार्यों के प्रस्तावों के चलते विभागां के बजट खर्च करने में सांसें फूल रही है। अमूमन देखा गया है कि साल भर बजट खर्च करने में फिसड्डी विभाग मार्च महीने में वित्तीय सत्र के आखिर में बजट खर्च करने के लिए कई तरीके अपनाते दिखते हैं।

बीते महीने 30 जनवरी तक विभागों में बजट खर्च का ब्यौरा
सबसे ज्यादा बजट वाले विभाग

1- ग्रामीण विकास के लिए 2940 करोड़ का बजट
2- लोक निर्माण विभाग के लिए 1661 करोड़ का बजट
3- पेयजल विकास के लिए 873 करोड़ का बजट
4- शहरी विकास के लिए 694 करोड़ का बजट
5- सिंचाई विभाग के लिए 677 करोड़ का बजट
6- ऊर्जा विभाग के लिए 433 करोड़ का बजट
7- चिकित्सा शिक्षा के लिए 350 करोड़ का बजट
8- माध्यमिक शिक्षा के लिए 290 करोड़ का बजट
9- आपदा प्रबंधन के लिए 255 करोड़ का बजट
10- पर्यटन विकास के लिए 227 करोड़ का बजट

योजनागत बजट में शून्य फीसद खर्च करने वाले विभाग

– मंत्री चंदनराम दास के उद्योग विभाग का बजट था 72 करोड़ रुपये, 30 जनवरी तक एक रूपये भी खर्च नहीं हुआ।
– मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के श्रम विभाग का बजट 69 करोड़ है, बीते महीने तक एक रूपये भी खर्च नहीं हो सका।
– योजना विभाग को 51 करोड़ रूपये मिले थे, 11 महीने बीतने पर भी एक पैसा खर्च नहीं कर सके।
– सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के विभाग को 2 करोड़ रूपये बजट से मिले थे, 11 महीने बाद एक भी रूपया खर्च नहीं कर सके।
– मंत्री सौरभ बहुगुणा के डेयरी विकास को बजट में 5 करोड़ का आवंटन हुआ था, 30 जनवरी तक एक रूपये भी खर्च नहीं हुए।
– कृषि उद्यान व सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी के सैनिक कल्याण विभाग को बजट में 37 करोड़ का आवंटन हुआ था, जनवरी के आखिर तक एक भी रूपये खर्च नहीं कर सके।

सीएम समेत टॉप मंत्री भी अपने विभागों के बजट खर्च करने में फिसड्डी। 

सीएम पुष्कर सिंह धामी के ऊर्जा विभाग को 433 करोड़ का बजट आवंटित हुए जिसमें सिर्फ 34.18 फीसद यानी 148 करोड़ का बजट खर्च हुआ और आपदा प्रबंधन के लिए 255 करोड़ का बजट मिला। जिसमें 113 करोड़ यानी 44.31 फीसदी बजट खर्च हुआ। पेयजल पेयजल विकास के लिए 873 करोड़ का बजट, लेकिन 436 करोड़ यानी 49.94 फीसदी बजट खर्च हुआ।
हैवीवेट मंत्री सतपाल महाराज के सिंचाई विभाग के लिए 677 करोड़ का बजट आवंटित हुआ जिसमें से केवल 142 करोड़ यानी 20.97 फीसदी बजट खर्च हुआ वहीं पर्यटन विकास के लिए 227 करोड़ का बजट, खर्च हुआ 87 करोड़। यानि कुल बजट का 40 फीसदी से भी कम। बेहद महत्वपूर्ण विभाग लोक निर्माण विभाग को बजट में सड़क परियोजनाओं के लिण् 1661 करोड़ रूपये मिले थे लेकिन जनवरी आखिर तक 758 करोड़ रूपये ही खर्च हो सके। मंत्री धन सिंह रावत के माध्यमिक शिक्षा के लिए 290 करोड़ का बजट मिला, लेकिन 77 करोड़ रूपये ही खर्च हो सके। महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य के खेल विकास के लिए 115 करोड़ का बजट मिला था लेकिन ग्यारह महीनों में कुल 87 करोड़ रूपये ही खर्च हो सके। विवादों में रहने वाले शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को शहरी विकास के लिए 694 करोड़ रूपये मिले थे लेकिन वह इसका आधा यानि 341 करोड़ रूपये ही खर्च कर सके। ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी के ग्रामीण विकास के लिए 2940 करोड़ रूपये का भारी भरकम बजट मिला था लेकिन 11 महीनों में वह सिर्फ 1268 करोड़ रूपये ही खर्च कर सके।

इन विभागों ने दिखाया आईना
1- पंचायती राज विभाग को बजट में 30 करोड़ मिले थे, 30 जनवरी तक पूरा बजट खर्च ।
2- खाद्य आपूर्ति मिले 324 करोड़ रूपये बजट के सापेक्ष 305 करोड़ रूपये खर्च ।
3- तकनीकी शिक्षा में 52 करोड़ रूपये के सापेक्ष 43 करोड़ रूपये खर्च।
4- परिवहन को मिले 62 करोड़ रूपये के बजट में से 36 करोड़ रूपये का व्यय।

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