पुण्यतिथि विशेष: बाबू जगजीवन राम, जो देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बनने से दो बार चूक गए
– देश में पचास सालों तक सांसद और सबसे लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहने का रेकार्ड बनाने वाले बाबू जगजीवन राम का 6 जुलाई 1986 को हुआ था निधन
PEN POINT : आजादी के बाद भारतीय राजनीति में दलितों के नेतृत्व के रूप में डॉ. भीमराव आंबेडकर को आदर्श माना जाता रहा है लेकिन आजादी के बाद उनकी राजनीतिक पारी काफी छोटी रही। देश के पहले कानून मंत्री होने की उपलब्धि डॉ. भीमराव आंबेडकर के नाम है, लेकिन देश में सबसे ज्यादा समय तक कैबिनेट मंत्री रहने का रेकार्ड भी एक दलित राजनीतिज्ञ के नाम है, आजाद भारत की पहली कैबिनेट का सबसे युवा कैबिनेट मंत्री के तौर पर शुरू हुए बाबू जगजीवन राम का सफर देश में सबसे लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री के रूप में तो रहा ही साथ ही वह देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बनने से भी दो बार चूके। देश को आजाद हुए साढ़े सात दशक हो चुके हैं तो लेकिन अब तक किसी दलित को देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं मिल सका लेकिन आजादी के तीन दशकों में ही देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलने वाला था लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि दो बार प्रधानमंत्री कुर्सी के सबसे ज्यादा करीब पहुंचे बाबू जगजीवन राम चूक गए। आज उनकी पुण्यतिथि पर जानते हैं उनके प्रधानमंत्री बनने से चूकने के किस्सों के बारे में –
इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में आपातकाल थोप दिया था, शुरूआती दौर में बाबू जगजीवन राम इंदिरा गांधी के समर्थन में थे। इंदिरा गांधी इलाहबाद कोर्ट से आयोग्य घोषित हो चुकी थी। बाबू जगजीवन राम के हिस्से रक्षा मंत्री रहते हुए 1971 में हुए भारत पाक युद्ध की जीत की उपलब्धि आ चुकी थी। वह इंदिरा गांधी के पिता पं. जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में भी काम कर चुके थे, इंदिरा गांधी की कैबिनेट में शीर्ष नेताओं में शुमार बाबू जगजीवन राम से इंदिरा गांधी ने वायदा किया था कि अगर उन्हें संवैधानिक कारणों से प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था तो वह उन्हें प्रधानमंत्री बनाएंगी। इलाहबाद फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल देश पर थोप तो दिया लेकिन इतिहासकार दावा करते हैं कि अगले दो सालों के दौरान वह कई बार आपातकाल को हटाकर खुद इस्तीफा देना चाहती थी और कुर्सी पर गांधी नेहरू परिवार से जुड़े बेहद वफादार व्यक्ति को बिठाना चाहती थी। लेकिन, उनके इस फैसले के खिलाफ उनके अपने बेटे संजय गांधी के अलावा उनके पार्टी के कई ऐसे अन्य नेता भी थे जिन्हें लगता था कि इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उनके लिए किसी अन्य नेता के नेतृत्व में काम करना सरल नहीं रह जाएगा। बाबू जगजीवन राम भी आपातकाल के बाद इस उम्मीद थे कि इंदिरा गांधी जल्द ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश से आपातकाल हटा देंगी और प्रधानमंत्री की कुर्सी उन्हें सौंप देंगी। इस उम्मीद में दो साल भी बीत गए तब तक इंदिरा गांधी ने भी आपातकाल हटाकर 1977 में लोकसभा भंग कर चुनावों की घोषणा कर दी वहां दूसरी ओर बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री की कुर्सी का इंतजार कर रहे थे। लिहाजा, इंदिरा गांधी की ओर से अपने वायदे पर कायम न रहने के कारण बाबू जगजीवन राम उनसे नाराज हो गए और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर हेमवती नदंन बहुगुणा के साथ कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम की पार्टी बनाई। 1977 के आम चुनाव में संपूर्ण विपक्ष जनता पार्टी के बैनर तले महागठबंधन कर कंाग्रेस के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरा था। 1977चुनाव परिणामों में जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को हराकर सरकार बना ली। 1977 चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें लाने वाली जनसंघ ने बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देने का फैसला किया। लेकिन, चौ. चरण सिंह ने किसी दलित प्रधानमंत्री के नेतृत्व में काम करने से इंकार कर दिया। चौ. चरण सिंह खुद प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी कर रहे थे तो मोरारजी देसाई भी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थे। जनसंघ के समर्थन के बावजूद चौ. चरण सिंह के विरोध के चलते और आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का समर्थन का खामियाजा बाबू जगजीवन राम को उठाना पड़ा और प्रधानमंत्री की कुर्सी के दूसरी पास सबसे पास पहुंचने के बावजूद वह चूक गए। हालांकि, उन्हें रक्षा मंत्रालय के साथ ही उप प्रधानमंत्री पद भी दिया गया। लेकिन, दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूकने के बाद उनके साथ अभी एक और ऐसी घटना होनी बाकी थी जिससे उनके राजनीति करियर में भूंचाल आना तो बाकी था, जिसके बाद उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते बंद होने के साथ ही उनका पांच दशक से लंबा राजनीतिक जीवन भी संकट में पढ़ने वाला था।
गांधी परिवार की बहू ने ला दिया भूंचाल
बाबू जगजीवन राम जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री पद के साथ रक्षा मंत्री का पद भी संभाल रहे थे। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी के संपादन में एक मैग्ज़ीन छपती थी सूर्या। साल 1978 में इस मैग्ज़ीन में जगजीवन राम के बेटे सुरेश की सेक्स करते हुए फोटो छापी गई थीं। पूरे देश में हंगामा मच गया। यह कांड उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक करियर का पतन का कारण भी बना। दावा किया जाता है कि सूर्या मैग्जीन में यह तस्वीरे बाबू जगजीवन राम के विरोधियों ने उनका करियर खत्म करने के साथ ही उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा को पूूरी तरह से खत्म करने के लिए छपवाई थी।
जब ‘बाबू ने बॉबी’ को मात दी
इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी थी और दिल्ली में इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी दलों की महत्वपूर्ण जनसभा थी। 1977 में रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता दल की रैली प्रस्तावित थी, तब तक इंदिरा गांधी का दाहिना हाथ माने जाने वाले बाबू जगजीवन राम भी कांग्रेस का साथ छोड़कर जनता दल के इस गठबंधन के साथ हो गए थे, यह जनता दल के गठबंधन के लिए बड़ी उपलब्धि थी। रामलीला मैदान में प्रस्तावित रैली की खबर इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कानों में पड़ी, वह दौर था जब फिल्मे टीवी के जरिए आम लोगों तक मुश्किल से पहुंच पाती थी। रविवार को प्रस्तावित रैली के लिए संजय गांधी के नजदीकी सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने रैली के दिन तब की बेहद प्रसिद्ध फिल्म ‘बॉबी’ को दूरदर्शन पर प्रसारित करने का फैसला लिया। उम्मीद थी कि इस फिल्म को देखते के लिए लोग घरों में रूकेंगे और जनता दल की रैली फेल हो जाएगी। लेकिन, बाबू जगजीवन राम का जनता के बीच इस कदर प्रभाव था कि उनकी वजह से रैली में भारी भीड़ जुटी। दूरदर्शन पर बॉबी के प्रसारित होने और बारिश होने के बावजूद भी लोग छाता लेकर बड़ी तादात में रैली में पहुंचे। बाबू जगजीवन राम की वजह से उमड़ी भीड़ ने मीडिया को भी खासा प्रभावित किया। अगले दिन प्रमुख अंग्रेजी अखबार की हेडिंग थी ‘ बाबू बीट्स बॉबी’ यानि बाबू ने बॉबी को मात दे दी।
जिस मूर्ति का किया अनावरण उसे ब्राह्मणों ने गंगा जल से धोया
लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री का रेकार्ड बनाने वाले, लंबे समय तक सांसद रहने वाले, उप प्रधानमंत्री, देश के रक्षा मंत्री रहने के बावजूद दलित होने की वजह से वह छुआछूत का सामना आजीवन करते रहे। 1978 में रक्षामंत्री रहते हुए बनारस में वह संपूर्णानंद की प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचे थे। प्रतिमा का अनावरण भी हो गया, सरकारी प्रोटोकॉल के हिसाब किताब से काम काज भी हो गया, लेकिन जैसे ही बाबू जगजीवन राम प्रतिमा का अनावरण कर लौटने लगे तो बनारस के ब्राह्मणों ने गंगा नदी से गंगा जल लाकर संपूर्णानंद की प्रतिमा को धोना शुरू किया, ब्राह्मणों का कहना था कि दलित के छूने से प्रतिमा अपवित्र हो गई है और अब गंगा जल से ही पवित्र किया जा सकेगा। इससे पहले वह एक बार पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भी दर्शन किए बगैर वापिस लौट आए थे। कैबिनेट मंत्री के रूप में पुरी के जगन्नाथ मंदिर में परिवार संग दर्शन करने पहुंचे बाबू जगजीवन राम को पुजारियों ने साफ कह दिया क्योंकि वह कैबिनेट मंत्री है तो उन्हें तो मंदिर के भीतर जाने से रोका नहीं जा सकता लेकिन उनके परिवार को हम किसी भी कीमत पर मंदिर के भीतर नहीं जाने देंगे, लिहाजा परिवार बगैर उन्होंने भी भगवान के दर्शन करने से इंकार कर दिया और बिना दर्शन किए ही लौट आए।
(Author – Pankaj Kushwal)