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पुण्यतिथि : शास्त्री जी की मौत को संदिग्ध बनाती हैं ये चार बातें

Pen Point, Dehradun : भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री की मौत आज तक रहस्‍य बनी हुई है। 1965 के भारत पाकिस्‍तान युद्ध में भारत ने पाकिस्‍तान को खदेड़ते हुए हाजी पीर और टिकथाल जैसे इलाके कब्‍जा लिये थे। अब भारतीय सेना लाहौर की ओर बढ़ रही थी। लेकिन अमेरिका और रूस ने लाहौर से अपने नागरिकां को निकालने के बहाने भारत से युद्ध विराम की मांग की। इसके लिये दोनों देशों के बुलावे पर प्रधानमंत्री शास्‍त्री समझौते के लिये उज़बेकिस्‍तान की राजधानी ताशकंद पहुंचे थे। जहां 10 जनवरी 1966 को पाकिस्‍तानी राष्‍ट्रपति जनरल अयूब खान के साथ उन्‍होंने समझौते पर हस्‍ताक्षर किये। इस समझौते की मध्‍यस्‍थता रूस ने की थी। इसके बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री को अफगानिस्‍तान जाना था। लेकिन ताशकंद के एक होटल में 11 जनवरी को उनकी संदिग्‍ध हालात में मौत हो गई। जिसे आज तक शक की नजर से देखते हुए हत्‍या माना जा रहा है, यहां हम उन चार बातें साझा कर रहे हैं, जिनके कारण इस बेहद ईमानदार व्‍यक्तित्‍व की मौत की गुत्‍थी आज तक नहीं सुलझ सकी है-

  1. पीएमओ ने 2009 में “देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता” का हवाला देते हुए शास्त्री की मृत्यु पर स्पष्टता की मांग करने वाली एक आरटीआई याचिका खारिज कर दी। यह सूचना अनुज धर नाम के लेखक ने मांगी थी। सरकार की ओर से कहा गया था कि ऐसी सूचना सार्वजनिक करने से दुनिया के कुछ देशों के साथ भारत के संबंध बिगड़ सकते हैं।
  2. शास्त्री का परिवार यह मानने को तैयार है कि दिवंगत प्रधानमंत्री की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन वह चाहते हैं कि विदेश मंत्रालय और मॉस्को में भारतीय दूतावास के बीच 1966 के पत्राचार को सार्वजनिक किया जाए। लेकिन ऐसा आज तक नहीं हो सका है
  3. शास्त्री के डॉक्टर और निजी सहायक दोनों 1977 में जांच समिति की सुनवाई के लिए जा रहे थे, तभी चलती गाड़ियों ने उन्हें टक्कर मार दी। आर.एन. चुघ की मृत्यु हो गई, राम नाथ की याददाश्त चली गई।
  4. आपातकाल के बाद शास्‍त्री की मौत के जांच कर रही राज नारायण समिति की रिपोर्ट के सभी रिकॉर्ड गायब हो गए हैं, संसद के भव्य पुस्तकालय में भी इसका कोई निशान नहीं है।

श्रेष्‍ठ आचरण वाले जमीनी नेता

उल्‍लेखनीय है कि लाल बहादुर शास्‍त्री ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्‍होंने सार्वजनिक जीवन में आचरण की श्रेष्‍ठता को बनाए रखा। उन्‍होंने रेल मंत्री रहते हुए एक रेल दुर्घटना पर पद से इस्‍तीफा दे दिया था। उनकी र्इमानदारी और जमीनी व्‍यवहार के किस्‍से आज प्रेरक प्रसंग बन गए हैं। ऐसा ही एक किस्‍सा स्‍वतंत्रता आंदोलन के दौर का है। तब लाला लाजपत राय ने सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसायटी बनाई थी। जिसका मकसद गरीब परिवारों से आने वाले स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों को आर्थिक मदद देना था। जिनमें लाल बहादुर शास्‍त्री भी शामिल थे। जब शास्‍त्री जेल में थे तो उनकी पत्‍नी को सोसायटी की ओर से 50 रूपए महीने की सहायता मिलती थी। उन्‍होंने जेल से अपनी पत्‍नी को संदेश भिजवाकर पुछवाया कि उन्‍हें 50 रूपए की आर्थिक सहायता पर्याप्‍त है, जवाब में उनकी पत्‍नी ने कहलवाया कि यह पर्याप्‍त है 40 रूपए से वह घर का पूरा खर्च चला लेती हैं और 10 रूपए हर महीने बचा रही हैं। जिस पर शास्‍त्री ने सोसायटी को पत्र भेज कर लिखा कि उनका घर 40 रूपए में चल रहा है, लिहाजा उनकी आर्थिक मदद में 10 रूपए की कटौती कर किसी जरूरतमंद को दे दिये जाएं।

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