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आज भी देश में टीबी से हर घंटे 9 लोग गंवाते हैं जान

-तीन हजार साल पुरानी बीमारी आज भी बनी हुई है जानलेवा, हर घंटे ढाई सौ से अधिक मरीज आते हैं टीबी की चपेट में
-टीबी के लक्षण सामने आने पर करवाएं जांच, निशुल्क दवाएं व उपचार से ही हो सकते हैं ठीक
PEN POINT, DEHRADUN : टीबी बीमारी, शायद यही इकलौती बीमारी होगी जो हजारों सालों से मानव अस्तित्व के साथ जुड़ी हैं। आज भी इस बीमारी से पूरी तरह से निजात नहीं मिल सकी है। आज भी देश में हर घंटे 9 लोगों की मौत टीबी से होती है। तमाम जागरूकता कार्यक्रमों, सरकारी प्रयासों के बावजूद भी टीबी के मरीजों में हर साल कुल तीन फीसदी की ही कमी का लक्ष्य देश हासिल कर सका है जबकि भारत ने 2025 में टीबी मुक्त होने का संकल्प लिया है। जबकि, दुनिया भर में टीबी के मरीजों का 28 फीसदी मरीज भारत में ही है।
दुनिया में टीबी बीमारी का इतिहास तीन हजार साल पुराना है। हर साल यह देश दुनिया में लाखों लोगों की मौत का कारण बनता है। भारत में भी हर घंटे करीब 9 लोग टीबी की वजह से मारे जाते हैं। 2019 में ही देश भर में करीब 80 हजार लोगों की मौत टीबी से हुई। वहीं, कोरोना के चलते देश में टीबी के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। 2022 में ही देश भर में करीब 22 लाख टीबी के मामले सामने आए जबकि 2021 में इन मामलों की संख्या 18 लाख थी। इस बढ़ोत्तरी ने देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के पेशानी पर बल डाल दिए।  1997 में टीबी से लड़ने के लिए रिवाइज्ड नेशनल टीबी कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया गया। टीबी की मुफ्त जांच और दवाइयों की सुविधा देश भर में पहुंचाना इसका लक्ष्य था। इस अभियान के चलते 1994 से लेकर 2015 तक देश में टीबी के मामलों में 42 फीसदी की कमी आई थी लेकिन कोरोना के कारण टीबी के उपचार की प्रक्रिया रूक सी गई, मरीजों को हर दिन दी जाने वाली दवा देने की प्रक्रिया थमी तो टीबी मरीजों के ठीक होने की गति भी रूक गई। लिहाजा अब इसमें 11 फीसदी की ही कमी इस दशक में दर्ज की गई। 2012 में प्राइवेट सेक्टर के लिए टीबी के रोगियों की जानकारी सरकार को देना जरूरी किया गया। 2012-17 के बीच टीबी से होने वाली मौतें कम करने और मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय रणनीति योजना चलाई गई है। सरकार ने सभी टीबी रोगियों का रिकॉर्ड रखने के लिए ऑनलाइन निक्षय इको-सिस्टम बनाया। टीबी रोगियों के पोषण के लिए नकद राशि देने की योजना शुरू की।
इन सभी प्रयासों के बावजूद भारत टीबी की बीमारी के मामले में दुनिया में अव्वल है। इंडिया टीबी रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, 2019 में भारत में 24.04 लाख टीबी के नए मरीज पाए गए। इस साल 79.14 हजार लोगों की टीबी से मौत हो गई। इस हिसाब से देखा जाए, तो देश में हर घंटे टीबी के 275 नए मरीज मिले और 9 लोगों की मौत हुई।
23 फरवरी 2021 को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक देश से टीबी के खात्मे के लक्ष्य को दोहराया। पीएम ने कहा कि दुनिया ने टीबी हटाने के लिए 2030 का लक्ष्य तय किया है लेकिन हम 2025 तक ही इसे हरा देंगे।
भारत सरकार का कहना है कि 2025 तक प्रति एक लाख लोगों पर टीबी के मामलों की संख्या 44 सीमित करनी है। इसके लिए सालाना करीब 10 फीसदी की दर से केस कम होने चाहिए। लेकिन मौजूदा दर 3फीसदी से भी कम है। ये आंकडे़ इस बात की तस्दीक करते हैं कि सरकार ने 2025 में जो देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य बनाया है उसे हासिल करना फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है। चिकित्सक बताते हैं कि साफ-सफाई न होना टीबी रोक पाने में सबसे बड़ी बाधा है। भारत में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर चलते हुए थूक देते हैं। अगर सड़क पर थूकने वाला व्यक्ति टीबी का मरीज होता है, तो उसके थूक में पाया जाने वाला टीबी बैक्टीरिया थूक के सूख जाने पर भी नहीं खत्म होता और धूल के साथ मिलकर हवा के जरिए दूसरे लोगों को संक्रमित करता है। टीबी का बैक्टिरिया थूक तक सीमित नहीं है हर तरह के मल-मूत्र में टीबी बैक्टीरिया मौजूद हो सकता है, जो हवा में मिलकर लोगों को संक्रमित कर सकता है।

2025 तक 63 लाख मामले और 14 लाख मौतें हो सकती हैं
कोरोना के दौरान टीबी मरीजों के इलाज में आई रुकावट से 2025 तक करीब 63 लाख नए मामले बढ़ सकते हैं और करीब 14 लाख लोगों की इससे मौत हो सकती है।  टीबी के इलाज में रुकावट आने का मतलब इसका और खतरनाक हो जाना होता है।

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