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राजकाज : हर प्रयोग साबित हुआ चार दिन की चांदनी

– पर्यावरण, जल, जीवन को बचाने के लिए सरकार की ओर से किए गए प्रयोग कुछ ही दिन चलते
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तराखंड राज्य में पर्यावरण, जल, जीवन बचाने के लिए पिछले पांच छह सालों में अनूठे प्रयोग हुए हैं जिनकी खूब वाहवाही भी हुई लेकिन गजब यह रहा कि यह प्रयोग जैसे ही मीडिया में प्रचारित प्रसारित हुआ उसके बाद सरकार उसे भूल बैठी। अब न वह प्रयोग कहीं दिखते हैं न उसके असर। पांच छह सालों में बेहतर विचार और दूरगामी परिणामों के साथ मुख्यमंत्री की ओर से यह प्रयोग राज्य में किए गए लेकिन न खुद मुख्यमंत्री न ही नौकरशाही इन प्रयोगों को आगे लेकर जाने में तत्पर दिखी।
साल 2017 में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतकर राज्य की सत्ता में आई, मुख्यमंत्री बनाए गए त्रिवेंद्र सिंह रावत। एलान हुआ कि मुख्यमंत्री से मुलाकात करने आने वाले फूलों का गुलदस्ता न लाकर भेंट के लिए किताब लेकर आएं। मुहिम को खूब वाहवाही मिली। लेकिन, यह अभियान जल्दी ही दम तोड़ दिया। फिर गुलदस्तों के साथ मेहमान मुख्यमंत्री आवास पहुंचने लगे तो मुख्यमंत्री खुद भी दिल्ली में जब भी किसी केंद्रीय मंत्री से मिलते तो उनके हाथ में भी गुलदस्ता होता। फूलों के बदले किताब देने का फैसला भी चार दिन की चांदनी साबित हुआ।
2017 में ही शौचालय में पानी बचाने की मुहिम भी शुरू की गई। इस मुहिम का हिस्सा राज्य की अफसरशाही भी बनी। शौचालय के फ्लश टैंक के जरिए पानी बचाने के लिए फ्लश टैंक में रेत से भरी बोतल रखनी शुरू की गई जिससे पेशाब के बाद फ्लश करते हुए कम पानी आए और पानी की बचत हो सकी। जल संकट से जूझ रहे शहर में इस मुहिम की कई लोगों ने खूब तारीफ की। लेकिन, यह मुहिम भी कुछ दिनों में ही फ्लश कर दी गई और लोगों के दिमाग से भी फ्लश हो गई।
साल 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से आदेश जारी हुआ कि मुख्यमंत्री आवास में तैनात कर्मचारी जो आवास के 6 से 7 किमी के दायरे में रहते हैं वह साइकिल से ही दफ्तर आएंगे। बताया गया कि इससे वायु प्रदूषण घटानें में मदद मिलेगी। कुछ दिनों तक कुछ कर्मचारी अधिकारी साइकिल से पहुंचे भी लेकिन यह महज दिखावा ही साबित हुआ और फिर से कार, स्कूटर, बाइक से कर्मचारियों ने दफ्तर आना शुरू कर दिया।
प्लास्टिक के बढ़ते कचरे को देखते हुए मुख्यमंत्री ने सरकारी बैठकों में प्लास्टिक की बोतलों में पानी देने पर रोक लगा दी और बैठकों में पीतल और तांबे के बर्तन में पानी परोसने के निर्देश दिए। कुछ दिनों तक इसका असर दिखा भी लेकिन मुख्यमंत्री आवास भी ही मेहमानों पानी के नाम पर एक प्रतिष्ठित कंपनी की छोटी छोटी बोतले दी जाने लगी और बैठकों में भी रस्म अदायगी के लिए लाई गई तांबे की बोतलें बैठक की मेज से गायब होने लगी और फिर से प्लास्टिक बोतल बंद पानी की बोतले नजर आने लगी।
साल 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और महिला एवं बाल कल्याण विभाग मंत्री रेखा आर्य ने प्रदेश में कुपोषित बच्चों को संपूर्ण आहार देने, संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए गोल लो अभियान शुरू किया गया। इसमें अफसरों को दो दो बच्चों को गोद लेना था और उन्हें कुपोषण से बचाने के साथ ही संपूर्ण आहार उपलब्ध करवाना था। जोर शोर से इस योजना का प्रचार प्रसार किया गया, कुछ अफसरों ने ऐलान भी किया कि उन्होंने बच्चों को गोद ले लिया है। लेकिन, कोरोना के बाद इस योजना का जिक्र तक नहीं किया गया न ही यह पता चल सका है कि जो बच्चे गोद लिए गए हैं वह गोद में ही है या गोद से उतार दिए गए हैं।
हालांकि, ऐसे में प्रयोगों की लंबी सूची है जो कई बार मुख्यमंत्री, अफसरों, कैबिनेट मंत्रियों की ओर से जनहित को देखते हुए किए जाने का एलान तो किया और उसे अमल में लाने के रस्मअदायगी तौर पर कार्रवाई भी की गई लेकिन कुछ हफ्तों बाद ही ऐसे प्रयोग इतिहास बनते रह गए।

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