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विलायत में पढ़े लिखे अफसर थे तिलाड़ी हत्याकांड के मास्टरमाइंड !

Pen point, Dehradun : तारीख़ 30 मई 1930। स्थान-टिहरी रियासत का रंवाई इलाका। बड़कोट गांव के पाय यमुना के बाएं तट पर तिलाड़ी मैदान में लोगों का हुजूम उमड़ा था। रियासत के काले कानूनों के खिलाफ जुटा ये हुजूम जल्द ही एक विशाल भा में तब्दील हो गया। लेकिन तभी तीन ओर से घात लगाए टिहरी राजा की फौज ने इन निहत्थे किसानों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। कुछ किसान गोलियों से मारे गए, तो कई जान बचाने के लिए यमुना में कूद कर बह गए। कुल मिलाकर 17 किसानों की जान गई और सैकड़ों घायल हो गए। इसे टिहरी का जलियांवाला कांड भी कहा जाता है। जिसमें जनरल डायर की भूमिका थी राजा के दीवान चक्रधर जुयाल की।

कांड की पटकथा

सामंतशाही का क्रूर चेहरा दिखाने वाले इस कांड की पटकथा काफी समय से लिखी जा रही थी। राजशाही के समय टिहरी रियासत की जनता करों के बोझ से दबी हुई थी इनमें औताली, गयाली, मुयाली ,नजराना, दाखिल खारिज ,देण खेण,( राज दरबार के मांगलिक कार्यों पर) आढ़त, पौणटोटी ,निर्यात कर, चील भर (भांग, सुरफ़ा, अफीम पर )आबकारी, डोमकर, रैका भवन, गंगाजल बिक्री कर, दास दासियो का विक्रय कर( हरिद्वार में 10 रूपए से 150 रूपए तक में दास बेचे जाते थे) आदि कर शामिल थे। राजघराने के घोड़े खच्चर, गाय भैंसों के लिए हर वर्ष प्रति परिवार एक बोझ घास, चार पाथा चावल, 2 पाथा गेहूं ,एक सेरा घी , एक बकरा टिहरी में राज महल को दिया जाता था और ना देने वाला दंड का भागी होता था।

राजा यूरोप की रंगीनियों में

प्रजा के शोषण का ये सिलसिला पहले से ही चल रहा था। लेकिन देश की अन्य रियासतों की तरह टिहरी राजा नरेंद्र शाह भी अंग्रेजों का पिछलग्गू बन गया था। तिलाड़ी कांड के दौरान राजा यूरोप की रंगीनियों में डूबा हुआ था। जबकि उसके पढे़ लिखे अफसरों और मुलाजिम जनता पर जुल्म ढहाते रहे। इन अफसरों पर नजर डालें तो दीवान चक्रधर जुयाल इंग्लैंड से सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर आया था। अंग्रेजी हुकूमत ने ही 1925 में उसे टिहरी रियासत में दीवान पद पर नियुक्ति दी थी। जिसके मातहत फौज और हर तरह का प्रशासनिक कार्य था।
1926 में इंग्लैंड और फ्रांस से वानिकी पढ़कर लौटे पद्मदत्त रतूड़ी को राजा ने डीएफओ के पद पर नियुक्ति दी। विलायती सोच रखने वाले पद्मदत्त रतूड़ी ने 1930 में जंगलों में मुन्नार बंदी का कार्य शुरू करवाया इससे किसानों की गायों के चरान चुगान के स्थान तक छीन लिए गए। प्रार्थना करने पर जंगल के अफसरों ने उस समय कहा कि गाय बछियों के लिए सरकार नुकसान नहीं उठाएगी। उन्हे पहाड़ी से नीचे गिरा दो, यह शब्द आम आदमी व किसानों को उत्तेजित करने के लिए काफी थे।

नंगे होकर तालाब में कूदने का हुक्म

एक और घटना नरेंद्रनगर में गवर्नर हेली के आगमन पर घटी। जहां पूरी रियासत से लोग गवर्नर के स्वागत में पहुंचाए गए थे। इन लोगों के लिये ना तो खाने का इंतजाम था और ना रहने का। नहाना धोना तो दूर की बात है। ऐसे में हुकूमत के ठेकेदारों ने अपने मनोरंजन के लिए रवांई जौनपुर के लोगों को नंगे होकर तालाब में कूदने का हुक्म दिये। गरीब जनता पानी में कूदी जरूर पर बाहर निकली तो मन में विद्रोह की ज्वाला लेकर।

ऐसे हुई तिलाड़ी कांड की शुरूआत
20 मई 1930 को आंदोलन के प्रमुख नेता दयाराम, रूद्र सिंह कंसेरु, रामप्रसाद और जमन सिंह को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट ने जंगलात अधिकारी (डीएफओ) पदम दत्त रतूड़ी के साथ टिहरी रवाना कर दिया। उधर पीछे-पीछे अपने नेताओं का पता लगाने के लिए किसानों का एक जत्था आया। डीएफओ पदम दत्त ने निहत्थे किसानों पर रिवाल्वर से डंडाल गाँव के पास फायर कर दिया। जिससे 2 किसान घटनास्थल पर शहीद हो गए। कुछ घायल हुए और मजिस्ट्रेट को भी गोली लग गयी, इन हत्याओं को देखकर पदम दत्तू भाग खड़ा हुआ पर किसानों की टोली घायलों को लेकर मजिस्ट्रेट सहित राज महल पहुंची। हत्याकांड का किस्सा सुनकर पुलिस वालों के होश उड़ गए और उन्होंने गिरफ्तार लोगों को छोड़ दिया। उधर पंचायत के समस्त राज कर्मचारियों को किसानों ने बंदी बनाने का निश्चय किया।
ऐसी हालत में कुछ कर्मचारी भागे और उन्होंने रवांई जौनपुर की घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर चक्रधर जुयाल को सुनाया। दीवान जुयाल ने पदम दत्त की पीठ थपथपाई और फौज लेकर रवांई पर हमला करने को कहा। फौज आने की स्थिति पर विचार करने के लिए पंचायत की एक आम सभा तिलाड़ी मैदान में बुलाई गई। उस दिन यानी 30 मई 1930 को 17 किसान शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गए । अगले दिन से सैनिकों ने गांव गांव जाकर बागी किसानों को तलाशना शुरू कर दिया और उन लोगों को टिहरी ले गए। भोले-भाले किसानों पर मुकदमे चले। बेकसूर किसानों को बाहर से वकील लाने की इजाजत नहीं थी। 68 किसानों पर मुकदमे चले और 1931 में सभी को 1 से 20 साल तक कारावास हुआ। 15 किसान कष्ट सहते सहते जेल में ही मर गए । इन आंदोलनों के प्रमुख नेताओं में दयाराम कंसेरु, भून सिंह व हीरा सिंह नगाणगांव ,लुदर सिंह ,जमन सिंह, दलपति ग्राम बड़कोट गाँव, दलबू ग्राम भंसाड़ी, धूम सिंह ग्राम चक्र गांव ,राम प्रसाद ग्राम खरादी व बैजराम ग्राम ख़ूबन्डी शामिल थे।

विशंभर दत्त चंदोला को कारावास
इस घटना को गढ़वाली समाचार पत्र ने तफसील से प्रकाशित किया और सौ लोगों तक के मारे जाने की सूचना दी! जिस पर चक्रधर जुयाल ने गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला के खिलाफ मानहानी का मुकदमा दर्ज किया और उन्हें एक साल का कारावास हुआ। बताया जाता है कि अपनी रिपोर्ट में चक्रधर जुयाल ने इस घटना में केवल चार लोगों के मारे जाने की सूचना दी थी। इसके अलावा उसने विद्रोह को भड़कोने का जिम्मा भी विशंभर दत्त चंदोला, भवानी दत्त उनियाल व संदानंद नैथानी के सिर मढ़ना चाहा।

अंधा हो गया था चक्रधर जुयाल

हालांकि विदेश से लौटने के बाद राजा ने इस घटना पर अपने ही अफसरों और कर्मचारियों की पीठ थपथपाई। इसके बावजूद चक्रधर जुयाल की प्रतिष्इा को बड़ा धक्का पहुंचा था। जिसे वापस पाने के लिए उसने देहरादून पहुंचने पर वायसराय लार्ड इरविन और उसकी पत्नी का जोरदार स्वागत किया। उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवाई और चापलूसी में लगा रहा। सन 1939 में उसने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बताया जाता है कि बाद में उसकी आंखों की रोशनी भी जाती रही।

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