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इतिहास: जब बादशाह अकबर को गढ़वाल पर कब्जे का इरादा छोड़ना पड़ा !

Pen Point, Dehradun : जब हिंदुस्तान में मुगलों का शासन था तो उन्होंने उत्तर भारत के लगभग हर मैदानी हिस्से को काबू कर लिया था। इन जीते हुए राज्यों से वो टैक्स वसूली कर अपनी सत्ता का संचालन करते थे। जब अकबर को सल्तनत मिली तो उसने एक कदम आगे बढ़ते हुए हिमालय के पहाड़ी राजाओं को अपने दरबार में तलब किया था। जिनमें से अधिकांश राज्य अपने आप में स्वतंत्र थे। गढ़वाल राज्य भी ऐसा ही स्वाधीन राज्य था। अकबर चाहता था कि इन राज्यों से भी उसके दरबार में आय का हिस्सा पहुंचे। यानी वह इन राज्यों को भी मुगल सल्तनत के अधीन लाना चाहता था। इसी सिलसिले में उसने गढ़वाल के राजा को भी बुलावा भेजा और आय से संबंधित दस्तावेज लाने को कहा।

बताया जाता है कि बादशाह अकबर के दरबार में जब गढ़वाल के राजा को अपने राज्य की आय का ब्यौरा पेश करना था। कुछ देर में दरबारियों ने देखा कि राजा एक दुबले शरीर वाले कमजोर उंट के साथ बादशाह के सामने पहुंच गया। दस्तावेज दिखाने के बजाए राजा ने कहा कि कि हुजूर यह कमजोर उंट मेरे राज्य की स्थिति बताने के लिये सबसे बेहतर दस्तावेज है, इसकी तरह ही मेरे राज्य में तीखे पहाड़ और उंची नीची घाटियां हैं जो बेहद गरीब हैं। जिस पर बादशाह अकबर मुस्कुरा दिया और उसने गढ़वाल को अपने अधीन करने का इरादा छोड़ दिया। उसका मानना था कि एक निर्धन राज्य से उसे कुछ हासिल नहीं होगा।

1793 में गढ़वाल हिमालय के सफर में आए अंग्रेज कर्नल हार्डविक ने अपनी रिपोर्ट में यह किस्सा बताया है, जिसे उन्होंने गढ़राज्य की राजधानी श्रीनगर प्रवास के दौरान सुना। उसने अपनी रिपोर्ट में श्रीनगर को काफी खुशहाल और आबाद नगर बताया। जहां 700 से 800 मकान थे और अच्छा खासा चहल पहल भरा बाजार था। गढ़ राज्य की आय के स्रोतों का भी उसने जिक्र किया है। जिसके मुताबिक उस वक्त राजकोष में सालाना पांच लाख रूपए से कुछ ज्यादा की आय पहुंच रही थी। जिसमें हर तरह के टैक्स, बिक्री और दान की राशि शामिल थी।

गढ़राज्य को यह आय तांबा और लोहे की खानों, फसलों की उपज और नदियों से निकलने वाले सोने की धुलाई से प्राप्त होती थी। जाहिर है कि कुदरती तौर पर गढ़राज्य को संपन्न कहा जा सकता था लेकिन संसाधनों की कमी से यह आय बहुत कम होती थी। यह आय इतनी कम थी कि फौज का खर्च और नौकर चाकरों का वेतन का इंतजाम राज्य के अधीन सूबेदारों को करना पड़ता था।

कर्नल हार्डविक ने अपने प्रवास के दौरान का ही ब्यौरा दिया है, तब तक आय बढ़ चुकी थी। लेकिन जब बादशाह अकबर के दरबार में गढ़वाल के राजा को बुलाया गया था तब की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि रिपोर्ट में राजा का नाम नहीं बताया गया है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों में गढ़वाल में राजाओं के कार्यकाल को देखें तो अकबर के समय श्रीनगर में राजा मानसिंह गद्दीनशीन थे। अकबर का कालखण्ड 1555 से 1610 ईसवी है। जबकि राजा मानशाह ने 1561 से 1611 तक गढ़वाल में राज किया। गढ़वाल का इतिहास लिखने वाले सभी इतिहासकारों ने राजा मानशाह के पराक्रम और शासन की प्रशंसा की है।

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