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भाजपा कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन तंत्र को बॉबी पंवार से कितनी चुनौती मिल रही है?

Pen Point, Dehradun : टिहरी लोकसभा सीट से इस चुनाव में 11 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। जिसमें बीजेपी से टिहरी राजपरिवर की माला राज्यलक्ष्मी शाह कांग्रेस से पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला के अलावा निर्दलीय और सबसे कम उम्र के निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार के अलाव अन्य शामिल हैं। अभी तक के प्रचार और सोशल मीडिया और मुख्य धारा की मीडिया में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही निर्दलीय बॉबी पंवार के बीच त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा 26 साल के नौजवान बॉबी पंवार की हो रही है। टिहरी ही नहीं बल्कि यह उत्तराखंड की पांचों सीटों के मतदाताओं के बीच भी उनकी बात हो रही है।

बॉबी पंवार के चर्चित होने की वजह बेरोजगारों के हक में प्रतियोगी परीक्षाओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई है। इस लड़ाई ने प्रदेश में सरकारी नौकरियों की भर्ती में घोटाले और उससे आम युवाओं की पीड़ा को सामने ला कर रख दिया। बेरोजगार बॉबी के नेतृत्व में सडकों पर उतर आए। पुलिस की लाठियां खाई, जेल गए और मुकदमें झेल रहे हैं। इसका ही असर हुआ कि बीजेपी नेतृत्व वाली प्रदेश की धामी सरकार को आनन फानन में नक़ल विरोधी अध्यादेश लाना पड़ा, जिसे बाद में विधानसभा में पास कर कानून के तौर पर लागू किया गया। समय के साथ बॉबी पंवार के साथ युवाओं का जोश और उम्मीदें भी जुड़ती चली गई। ऐसे में बॉबी पंवार को जो पहचान मिली, उसके बूते हुी चुनाव समर में उतर गए।

चुनाव के लिहाज से बॉबी पंवार की रणनीति पर समीक्षा जरूरी है। देखा जा रहा है कि अपने पूरे कैम्पेन में वह बीजेपी प्रत्याशी माला राज्यलक्ष्मी और उनके अब तक के सियासी सफ़र पर सीधा हमला बोल रहे हैं। साथ ही यह बात भी गौर करने वाली है कि वह अपने किसी भी चुनावी मंच पर प्रभावशाली तरीके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर कोई बड़ा और सीधा हमला नहीं कर रहे हैं। उनके निशाने पर सिर्फ राज परिवार है।

जाहिर है कि इस लोकसभा सीट पर परम्परागत तौर पर ज्यादातर टिहरी राज परिवार का ही दबदबा रहा है। ऐसे में सांसद के तौर पर उनकी जनता से दूरी हमेशा से चर्चा में रही है। हालांकि इस बार के संसदीय कार्यकाल में माला राज्य लक्ष्मी शाह उतराखंड के पांचो सांसदों के मुकाबले सबसे ज्यादा सवाल उठाने में सफल रही। वहीं वह अपने चुनाव प्रचार में किसी भी प्रतिद्वंदी पर कुछ बोलने के बजाय वह मोदी सरकार के कार्यकाल में चलाई जा रही सरकारी योजनाओं की बात कर रही हैं और मोदी के नाम पर ही वोट मांग रही हैं।

राजनीति की कठोर सच ये भी है कि निर्दलीय प्रत्याशी चर्चित होने के बावजूद चुनाव प्रबंधन के चलते चुनाव हार जाते हैं। शून्य से शुरूआत करना और मतदान के दिन तक मनोवैज्ञानिक और जन समर्थन की बढ़त को बनाए रखना उनके लिये बड़ी चुनौती बन जाती है। इस बावत, वरिष्ठ पत्रकार राजू गुसाईं कहते हैं कि चुनावी चर्चा और चुनावी प्रबंधन दो बड़े और अलग पहलू हैं। इस पर गंभीरता से अगर देखा जाए तो, किसी भी निर्दलीय के लिए चुनावी मशीनरी को संचालित करने के लिए बड़ी तादाद में लोगो की जरूरत होती है। जिसे 14 विधानसभा क्षेत्रों में फैले एक-एक पोलिंग बूथ तक पूरे चुनावी सिस्टम को मैनेज करना होता है। जो बेहद आसान काम नहीं है और इसी प्रबंधन के लिए बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दलों के पास बड़ा तंत्र है।

उत्तरकाशी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष भंडारी के मुताबिक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के आखिरी मौके पर परेशान हो जाता है। इस मामले में बीजेपी का चुनावी तंत्र तो कांग्रेस के मुकाबले बहुत ज्यादा मजबूत है। राज्य और केंद्र में बीजेपी कि सरकार है, मोदी योगी कि लोकप्रियता है। टिहरी लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून जिले के बड़ी संख्या में पार्टी के विधायक हैं। जिन्हें पहले ही पार्टी ने अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में लगा दिया है। ऐसे में किसी भी बड़े निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाजी होगी। हालांकि वे मानते हैं कि टिहरी सीट पर निर्दलीय बॉबी पंवार ने बड़ा स्पेस तो बना लिया है।

फिलहाल युवाओं के जोश देखते हुए यह भी कहा जा रहा है कि राजनीतिक दलों के चुनाव प्रबंधन को बॉबी पंवार चुनौती देते दिख रहे हैं। बॉबी समर्थकों की दलील है कि उनके पास हर बूथ पर उन युवाओं की टीम है, जो पहले चुनावों में भाजपा या कांग्रेस के लिये काम कर चुके हैं। वहीं बॉबी पंवार भी अपने एक साक्षात्कार में कह चुके हैं कि उनके साथ लोग दलगत राजनीति से उपर उठकर काम कर रहे हैं, इसीलिये उन्होंने चुनाव मैदान में कदम रखा है।

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