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माथी देवी मंदिर : जहां नाराज होकर भक्त करते हैं देवी से झगड़ा

– चितकुल का माथी देवी मंदिर अनोखा, यहां मन्नत पूरी न होने या गांव में कोई नुकसान होने पर देवी को कमरे में बंद कर देते हैं ग्रामीण
PEN POINT, DEHRADUN : हिमालयी क्षेत्रों में देवताओं और भक्तों के बीच एक अनूठा रिश्ता है। यहां देवताओं की भक्ति को लेकर भक्तों पर न उन्माद हावी है न हीं कोई तनाव। इस सहज रिश्ते की बानगी देखिए कि भारत तिब्बत सीमा से सटे हिमाचल प्रदेश के चितकुल में ग्रामीण अपनी आराध्य माथी देवी के प्रति भक्ति में लीन रहते हैं तो गांव में कुछ नुकसान होने पर या फसलों के कम उत्पादन पर देवी से नाराज होकर उसे कमरे में बंद कर देते है, देवी से झगड़ने लगते हैं।
चितकुल, कभी इस गांव का रिश्ता उत्तरकाशी जनपद से बेहद प्रगाढ़ था। चितकुल के ग्रामीण सहज रूप से उत्तरकाशी के बगोरी हर्षिल और मोरी के हरकी दून क्षेत्र तक आवाजाही करते थे। हालांकि, यह गांव बौद्ध धर्म का अनुसरण करने वाला गांव है लेकिन इस गांव में पिछले पांच सौ सालों से माथी देवी गांव के सुख दुख की साथी, गांव की रक्षा करने वाली देवी ग्रामीणों के साथ सहज भाव से रहती है। बाकी जगहों पर भक्त और भगवान के रिश्ते से अलग यहां भक्त अपनी इस देवी से नाराज भी होते हैं, झगड़ने भी लगते हैं। बताते हैं कि माथी देवी ने अपना सफर वृदांवन से शुरू किया था, संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र का भ्रमण कर देवी तिब्बत भी पहुंची लेकिन चितकुल पहुंची तो इसे ही अपना ठिकाना बना लिया। भगवान बदरी विशाल की पत्नि के रूप में विख्यात माथी देवी का मंदिर चितकुल गांव के बीचों बीच स्थित है। पांच सौ साल पहले जिस साल देवी चितकुल में बसने का फैसला उस वर्ष चितकुल में फसलों का उत्पादन भी खूब हुआ और गांव में सृमद्धि भी आई। तब से इस बौद्ध बहुल गांव में देवी आराध्य बन गई। लेकिन, देवी और ग्रामीणों के बीच रिश्ता अनोखा है। जब गांव में कोई रोग, नुकसान, फसलों का कम उत्पादन होता है तो ग्रामीण देवी से लड़ने झगड़ने लगते हैं। हिमालय को अपना घर बनाने वाले पर्वतारोही और लेखक बिल एटकिन अपने एक मेमोरियर में लिखते हैं कि माथी देवी अगर चितकुल के ग्रामीणों का ख्याल नहीं रखती हैं तो ग्रामीण उनसे नाराज होते हैं। वह बताते हैं कि जिस साल देवी कृपा से ग्रामीणों की फसल अच्छी होती है उस साल देवी को बड़ा भोग लगाया जाता है लेकिन जिस साल फसल बर्बाद हो जाती है या अपेक्षा से कम उत्पादन होता है उस साल ग्रामीण देवी से नाराज होकर उसे कमरे में बंद कर देते हैं जैसे कि नटखट बच्चे को किया जाता है। कुछ सालों तक यह संबंध देवी और भक्तों के बीच की इस दूरी को पाटने के साथ ही अपने आप में अनूठा था। लेकिन, अब जब धार्मिक मान्यताओं में उन्माद शामिल हो चुका है तो अब इस रिश्ते को नए सिरे से भी परिभाषित किया जाने लगा है।
अब ग्रामीण बताते हैं कि वह देवी से नाराज होकर उसे कमरे में बंद नहीं करते हैं बल्कि छह महीनें के लिए जब माथी देवी के मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं कि छह महीनों तक न तो देवी की पूजा की जाती है न ही कोई भोग लगाया जाता है। अप्रैल महीने में माथी देवी के मंदिर के कपाट खुलते हैं जो अक्टूबर में बंद कर दिए जाते है। ग्रामीणों देवी के साथ माथी देवी के सहज रिश्ते को अब नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे है। यह ठीक वैसे ही है जैसे उत्तरकाशी के मोरी क्षेत्र में लंबे समय से दुर्योधन को पूजा जाता था लेकिन अब नई पीढ़ी इसे सीरे से खारिज कर दुर्योधन को शिव का नाम दे रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उनके क्षेत्र में कभी भी दुर्योधन को नहीं पूजा जाता था।

'Pen Point
भारत तिब्बत सीमा पर बसा हिमाचल प्रदेश का आखिरी गांव चितकुल। अपने दिलकश नजारों से यह पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना भी है। चितकुल का उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद से भी पुराना नाता है।

पुराना है उत्तराखंड और चितकुल का रिश्ता 
समुद्रतल से करीब 14 हजार फीट की उंचाई पर स्थित चितकुल गांव भारत तिब्बत सीमा का आखिरी आबाद गांव है। भारत तिब्बत व्यापार के दौरान यह गांव व्यापारिक मार्ग का समृद्ध गांव माना जाता था। साथ ही इस गांव से व्यापारी व्यापार के लिए लमखागा दर्रे से होते हुए हर्षिल पहुंचकर व्यापार करते थे। आज भी हर्षिल के निकट बगोरी स्थित गांव में नेलांग जादुंग के भोटिया परिवारों के साथ चितकुल किन्नौर के कई परिवार भी निवासरत हैं। वहीं, मोरी के गोविंद वन्य पशु जीव विहार क्षेत्र स्थित हरकीदून होते हुए एक लंबे बर्फीले दर्रे को पास कर चितकुल पहुंचा जा सकता है। लिहाजा, उत्तरकाशी जनपद से चितकुल का पुराना रिश्ता रहा है। यूं तो अब चितकुल में पर्यटकों का तांता लगा रहता है और यहां पर्यटन ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख स्रोत बन गया है साथ ही सेब की बागवानी ने भी यहां समृद्धि के द्वार खोले हैं। लेकिन, कुछ दशकों पहले तक यहां ग्रामीण पारंपरिक रूप से तिब्बत के साथ व्यापार के साथ ही भेड़ बकरी पालन का काम करते थे लिहाजा वह चारागाहों की खोज में उत्तरकाशी के हर्षिल स्थित क्यारकोटी बुग्याल, हरकीदून बुग्याल तक पहुंचा करते थे। लिहाजा, चितकुल का उत्तरकाशी जनपद के सीमांत क्षेत्रों से पुराना संबंध रहा है।

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