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ऐवरेस्ट से पहले गढ़वाल हिमालय की इस चोटी पर चढ़े थे तेनजिंग नोरगे

Pen Point, Dehradun : गढ़वाल हिमालय में कई जगहों से बंदरपूंछ हिमशिखर नजर आते हैं। एक उंची रिज से जुड़ते हुए तनकर खड़ी दो चोटियों को ही बंदरपूंछ कहते हैं। हिमालय का यह हिस्सा पर्वतारोहियों को हमेशा ही अपनी ओर खींचता रहा है। दिलचस्प बात ये है कि ऐवरेस्ट की चुनौती तोड़ने से पहले महान पर्वतारोही तेनजिंग नोरगे बंदरपूंछ-1 चोटी तक पहुंचे थे। तब वह दून स्कूल के टीचर और पर्वतारेाही जैक गिब्सन के पोर्टर थे। बंदरपूंछ समिट रिज तक पहुंचने वाला यह पहला दल था।
वर्ष 1937 के जुलाई महीने में तेनजिंग और उनके भाई रिनजिंग के साथ जैक गिब्सन और मार्टिन इस अभियान पर चले थे। अपनी किताब एन इंडियन इंग्लिशमैन में गिब्सन ने इस पूरे सफर के बारे में लिखा है। जिसके मुताबिक। देहरादून से मसूरी होते हुए इस दल ने उत्तरकाशी के कोट बंगला में कैंप किया था। उसके बाद डोडीताल पहुंचने के बाद द्रवा टॉप पार किया। फिर हनुमान गंगा के पास 10,800 फीट पर बंदरपूंछ के लिये बेस कैंप बनाया। इसके बाद 14,400 फीट पर पहला कैंप बना और 17,300 फीट पर दूसरा कैंप हुआ।

12 जुलाई 2037 को मौसम कुछ खराब था, इसके बावजूद गिब्सन और दोनों शेरपा ने 18000 फीट की उंचाई पर चोटी तक पहुंचने का फैसला किया। करीब दो घंटे की मशक्कत के बाद वो बंदरपूंछ-1 पर चढ़ने में कामयाब हो गए। बर्फ काटकर हर कदम पर सीढ़ी बनानी पड़ रही थी। जिसमें दोनों शेरपा भाईयों ने सबसे ज्यादा मेहनत की। जाहिर है कि उन्हें इस काम का बेहतर अनुभव भी था। गिब्सन लिखते हैं कि तभी बर्फबारी शुरू होने लगी और कैंप में हमारे टैंट कच्ची बर्फ से ढकने लगे। ताजी बर्फ होने के कारण वापसी की राह काफी कठिन रही।

यह अभियान यहीं खत्म नहीं हुआ। बल्कि यह अपने आप में अनूठा सफर था। इसके बाद यह दल वापस लौटकर हर्षिल पहुंचा। वहां दो दिन ठहरने के बाद गंगोत्री से कालिंदीपास ट्रैक होते हुए बद्रीनाथ पहुंचा। बद्रीनाथ से दल ने बर्फीली राह छोड़कर कुछ निचले पहाड़ी रास्ते पकड़े और नैनीताल का रूख किया। 27 जुलाई 1937 को यह दल नैनीताल पहुंचा और फिर वापस देहरादून के दून स्कूल लौट गया।

1953 में तोड़ी ऐवरेस्ट की चुनौती
उत्तराखंड हिमालय के इस सफर के 16 साल बाद 1953 में एडमंड हिलेरी के साथ तेनजिं़ग नोरगे ने ऐवरेस्ट को फतह किया। इस बीच तेनजिंग पश्चिमी हिमालय में कई पर्वतारोहण अभियानों में शामिल रहे। सबसे पहले 1935 में बीस साल की उम्र में उन्हें ब्रिटिश माउंट ऐवरेस्ट अभियान में शामिल किया गया था। तब प्रख्यात पर्वतारोही एरिक सिंप्टॉन की नजर उन पर पड़ी थी। तिब्बत की ओर से ऐवरेस्ट चढ़ने के तीन अभियानों में वो शामिल रहे, ये तीनों अभियान असफल रहे।

कौन थे जैक गिब्सन

जैक गिब्सन नौसेना अधिकारी चार्ल्स गिब्सन और एम्मेलिन मैरी फ्लेचर की संतान थे। 3 मार्च 1908 को उनका जन्म हुआ था। 1921 में स्कूली शिक्षा के लिए जैक गिब्सन को हैलेबरी और इंपीरियल सर्विस कॉलेज भेजा गया। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की। पढ़ाई के बाद उन्होंने दून में आवेदन किया और उन्हें हाउसमास्टर के पद की पेशकश की गई। वह जनवरी 1937 में कश्मीर हाउस के हाउसमास्टर के रूप में दून में शामिल हुए। एक हाउसमास्टर होने के अलावा, उन्होंने दून के विद्यार्थियों को भूगोल भी पढ़ाया। रॉयल इंडियन नेवल रिजर्व के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ने के लिए उन्होंने दून से कुछ दिनों की छुट्टी भी ली थी।

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