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क्यों प्रसिद्द है चम्पावत का महाभारत कालीन विश्वास पर आधारित यह मंदिर ?

PEN POINT, DEHRADUN : उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल का प्राकृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण जनपद है चम्पावत। यह जिला उत्तरी क्षेत्र में जनपद पिथौरागढ़ में सरयू नदी की सीमा रेखा से लगा हुआ है. वहीं पश्चिमी सीमा अल्मोडा व नैनीताल जिलों से सटी हुई हैं तथा दक्षिणी सीमा तराई जनपद ऊधम सिंह नगर से जुड़ी हुई हुई है। पर्यटन के नजरिये से यह जिला बेहद खूबसूरत है। इसके अलावा धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी यहाँ देखने और जानने के लिए बहुत कुछ है।

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आज हम बात करेंगे यहाँ एक प्राचीन विश्वास पर आधारित मंदिर की। किवदंतियों और मान्यताओं के मुताबिक महाभारत कालीन पाँच पांडवों में सबसे बलशाली भीम के पुत्र घटोत्कच का चम्पावत में एक मंदिर है। जिला मुख्यालय से महज 4 किमी, की दूरी पर तामली मोटर मार्ग के किनारे पर स्थित है। मान्यता है कि द्वापर युग के अंत में महाभारत की लडाई में महाबलशाली घटोत्कच का सिर धड़ से कट कर इस स्थान पर गिरा था। यह क्षेत्र एक जलाशय के रूप में था। पांडव अपने पुत्र के सिर को न देखकर बहुत दुखी हुए तो स्‍वप्‍न में स्‍वंय घटोत्‍कच ने बताया कि मेरा सिर अमुक क्षेत्र में पड़ा है। इसके बाद पांडव युद्ध जीतने और राजपाठ ग्रहण करने के बाद अपने पुत्र का शीष ढूँढते हुए यहां पहुंचे और जलाशय को देखकर घबरा गये कि कैसे सिर को निकाला जाए।

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इसके बाद उन्‍होंने माँ भगवती अखिलतारणी से प्रार्थना और इसके बाद भीम ने अपनी गदा से प्रहार कर जलाशय के किनारों को तोड़ कर घटोत्‍कच सिर निकालकर अंतिम क्रिया कर उसका का श्राद्व किया। जिसके चिन्‍ह, हवन कुन्‍ड, दीप आदि आज भी खण्‍डहर के रूप में आज भी यहाँ विद्यमान हैं। जिस स्‍थान पर श्राद्व किया गया उस शिला को धर्म शिला के नाम से जाना जाता है। धार्मिक पर्वो पर आज भी यहां पर स्‍नान करने का महत्‍व है।

भीम और हिडिम्बा के पुत्र का सिर जन्म से ही घड़े के समान चिकना होने के कारण उसका नाम घटोत्कच पड़ा। अपनी पत्नी हिडिम्बा के साथ भीम महज एक साल तक ही रहे। इसके बाद भीम अपनी माता कुंती और अपने सभी पांडव भाइयों संग रहने लगे। इस बीच हिडिम्बा ने घटोत्कच को जन्म दिया और अकेले ही उसका पालन-पोषण किया।

द्वापर युग में जब महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें कई शूरवीरों ने अपनी वीरता का परिचय दिया और शत्रु सेना में हाहाकार मचा दी थी। ऐसे में घटोत्कच ने भी इस युद्ध में भाग लिया और असंख्य हाथियों का बल प्राप्त होने के कारण शत्रु सेना को तहस नहस कर दिया। घटोत्कच ने अपनी मायावी शक्ति का प्रदर्शन कर जीत का सेहरा पांडवों के पक्ष में लाकर रख दिया था।

युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में मायावी शक्तियों से भरपूर घटोत्कच ने कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग कौरव सेना पर किया जिससे कौरव सेना को भारी क्षति पहुँची। युद्ध क्षेत्र में भयभीत होकर कौरव सेना के नायक दुर्योधन ने धनुर्धर कर्ण को यह तक कह दिया था कि जब सब कुछ समाप्त हो जाएगा तब तुम अमोघ शस्त्र का प्रयोग करना। जब घटोत्कच कौरव सेना पर भारी पडऩे लगा तो कर्ण ने दुर्योधन की बात मानते हुए घटोत्कच पर देवराज इन्द्र द्वारा प्रदान किए गए अमोध शस्त्र का प्रयोग किया। इस दिव्य शक्ति का प्रयोग कर उसका सिर धड़ से अलग हो कर कहीं गिर गया और घटोत्कच एक विशाल वृक्ष की भांति जमीन पर गिर गया। विशाल शरीर होने के कारण गिरते समय भी सैकड़ों कौरव सैनिक मारे गए।

महाभारत के इस महानायक ने अपने पिता को वचन दिया था कि जब भी पिता उसे याद करेंगे तुरंत वह उनके सामने हाजिर होगा। महाभारत के युद्ध में जब माता हिडिम्बा ने वीर घटोत्कच को अपने पिता द्वारा दिया गया वचन याद करवाया तो वह तुरंत ऊझी घाटी के मनाली से कुरुक्षेत्र को रवाना हुए थे। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र के विनाशकारी युद्ध में घटोत्कच का धड़ यहां आकर गिरा था। प्रसिद्ध देवभूमि चम्पावत में देवदार के विशाल वृक्ष की ओट में स्थित मंदिर आज भी श्रद्धालुओं और देशी-विदेशी पर्यटकों का केन्द्र बना हुआ है। चंपावत जिले में स्थित यह घटोत्कच मंदिर पांडवों ने स्थापित किया हुआ बताया जाता है।

कहां से पहुंचा जा सकता है घटोत्कच मंदिर

घटोत्कच मंदिर घटोट्कच मंदिर के लिए आपको चंपावत जिला मुख्यालय चंपावत शहर से लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर सड़क से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह चारों ओर से देवदार के वृक्ष से आच्छादित है। यहां का आकर्षक और मनमोहक नजारा पर्यटकों को बरबस ही अपनी और खींचने के लिए काफी है। यहाँ आप शानदार फोटो ग्राफ़ी और सोशल मीडिया के लिए वीडियो रील्स बना सकते हैं।

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