वो शायर, शांति प्रिय और 1857 की क्रांति का नेतृत्व करता मुग़ल बादशाह !
Pen Point, Dehradun: बहादुर शाह ज़फर का जन्म 24 अक्टूम्बर 1775 में पुरानी दिल्ली में हुआ था, उसके पिता अकबर शाह द्वितीय और माँ लीलाबाई थी। पिता की मृत्यु के बाद 18 सितंबर, 1837 में मुग़ल बादशाह बनाया गया। ज़ीनत महल उनकी सबसे बड़ी पत्नी पत्नी थी, जो अंतिम समय तक शाह जफ़र के साथ रही। बहादुर शाह जफर ने 4 शादियां की थीं और उनकी 47 संताने थीं, जिनमें 16 बेटे और 31 बेटियां शामिल बताई जाती हैं।
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बहादुर शाह ज़फ़र या अबू ज़फ़र 1837 में, 62 साल की उम्र में मुग़ल सिंहासन पर बैठा। ज़फर का फ़ारसी में अर्थ ‘विजय’ होता है, वह एक कवि और कलाकार थे। बादशाह बहादुर शाह दिल्ली के आखिरी मुग़ल बादशाह थे। उस दौर में बादशाह का खास होना भी अपने आप में बड़ी चीज़ थी। बादशाह को शायरी, गज़लों का शौक था और वह खुद भी लिखने पढ़ने के शौक़ीन था। यही वजह रही कि जीते जी अकबर द्वितीय ज़फर को अपनी सल्तनत नहीं देना चाहते थे, क्योकि ज़फर दिल से शायर, शांति पसंद और बेहद उदार ह्रदय के थे। उन्हें भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर और उर्दू के जाने माने शायर के रूप में जाना जाता है। ज़फर शौकिया शायर नहीं थे, बल्कि उनका दिल शायरी में बसता था। उन्होंने ढेरों ग़ज़लें रची थीं। इन ग़ज़लों में मानव जीवन की कुछ गहरी सच्चाइयां और भावनाओं की दुनिया बसी थी। इसीलिए वे एक उम्दा शायर कहलाए।
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इसे ज़फर की उदारता ही कहेंगे कि उनके दरबार में शेख इब्राहीम जौक और मिर्ज़ा ग़ालिब दोनों थे उन्होंने ग़ालिब, जौक, दाग़ और मोमिन जैसे बड़े शायरों को भी अपने शासन काल में प्रोत्साहित किया। मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर बहादुर शाह ज़फर अपने जन्म से 1775-1862 तक भारत में रहे। शांति प्रिय और उदार ह्रदय होने के बावजूद भी उन्होंने अंग्रेजो के बढ़ते प्रभाव को दखते हुए 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शरीक हो कर भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया।
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यूं तो आमतौर पर बहादुर शाह जफर को बेहद शांतिप्रिय शासक के रूप में जाना जाता था। देश पर शासन करने को लेकर उनकी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं रही। उनके शासन काल में कई रियासतों ने कंपनी शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की घोषणा कर दी। मेजर विलियम हडसन ने उन्हें दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। क्योंकि अंग्रेजों ने एक बार विद्रोह को कुचल दिया और इसके बाद, बहादुर शाह ज़फ़र पर अदालत में मुकदमा चलाया। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने उन्हें अंधा तक कर दिया और जेल में डाल कर कई यातनाएं दी गयी।
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जब सन 1857 में ब्रिटिशो ने लगभग सम्पूर्ण भारत पर कब्ज़ा कर लिया था तो ज़फर ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया और शुरुवाती परिणाम भी पक्ष में रहे पर अंग्रेजो के छल कपट के आगे यह लड़ाई उनके पक्ष में चली गई और बादशाह ज़फर ने हुमायूँ के मकबरे में शरण ली लेकिन मेजर हडस ने चाल से उनके बेटे मिर्ज़ा मुग़ल और खिजर सुल्तान और पोते अबू बकर को पकड़ लिया। इतिहास के पन्नो में दर्ज लेखों के मुताबिक 1858 में देश में तेजी से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रान्ति का माहौल पूरी तरह गरम हो चुका था।
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अंग्रेजों ने जुल्म की सभी हदें पार कर दीं। जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए। उन्होंने अंग्रेजों को जवाब दिया कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं। आजादी के लिए हुई बगावत को पूरी तरह खत्म करने के मकसद से अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह को देश से निर्वासित कर रंगून (बर्मा) भेज दिया, जहां 1862 में उनकी मौत हो गई।
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बहादुर शाह जफ़र को 63 साल की बूढी उम्र में राजकुमार मुअज्जम बहादुर शाह की उपाधि देकर सम्राट बनाया गया। बहादुर शाह को भारत के अंतिम मुगल सम्राट के रूप में और 1857 के भारतीय विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। 1857 के भारतीय विद्रोह में उनकी भागीदारी के बाद, अंग्रेजों ने उन्हें कई आरोपों में दोषी ठहराने के बाद, 1858 में अपदस्थ कर दिया और ब्रिटिश-नियंत्रित बर्मा में रंगून में निर्वासित कर दिया। जहाँ 7 नवम्बर 1862 को उनकी मृत्यु हो गयी।
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